ज्योतिष

शुक्र पहले भाव में

Written by Bhakti Pravah

आज से हम शुक्र के सभी भावों में होने पर उसके सामान्य फलकथन पर चर्चा करेंगे| जैसा की आपको पता है की शुक्र को दैत्यों का गुरु माना गया है जबकि बिर्हस्पती द्वेताओं के गुरु माने गये है| आज जब हम अपने चारों और नजर दोडाकर देखते है तो पायेंगे की शुक्र का अधिपत्य चारों और हो गया है| साधू संत जो की बिर्हस्पती ग्रह के कारक माने गये है वो भी लक्ज़री गाडी आलिशान आश्रम वातानुकूलितकमरों आदि में रहते है यानी एक तरह से शुक्र ने अपना आधिपत्य सब पर कर लिया है| भोग विलाश ऐश्वर्य ज्ञान {क्योंकि शुक्र गुरु है इसिलिय उसे ज्ञान का भी कारक माना गया है} विवाहिक जीवन का कारक माना गया है|

लग्न में शुक्र यदि शुभ सिथ्ती में है तो जातक का चेहरा साफ रंग का चेहरे पर एक ख़ास किस्म की आभा , दूसरों को जल्दी अपनी तरफ आकर्षित करने की चहरे की बनावट होती है| जातक ग्यानी दूसरों का मान सम्मान करने वाला और विद्वान होता है| जातक का स्वभाव मिलनसार होता है और उसके मित्रों का दायरा काफी बड़ा होता है| जातक या जातिका के विपरीत लिंग के मित्र काफी संख्या में होते है| ऐसा जातक जल्दी से दुसरो से अपने सम्बन्ध खराब नही करता और दुश्मनी नही बरतता है| जातक की कला सोंदर्य में विशेष रूचि होती है| चूँकि कालपुरुष की कुंडली में सप्तम भाव में शुक्र की अपनी ही राशि आती है और शुक्र की सप्तम भाव पर दृष्टी होने से उसे अच्छा विवाहिक सुख मिलता है|

चूँकि शुक्र लक्ज़री वाहन का भी कारक है इसिलिय इस भाव में शुभ शुक्र जातक को वाहन का सुख भी देता है|

ज्योतिष के महान विद्वान वशिष्ठ जी का मत है की लोगन में विराजमान शुक्र कुंडली के तिन सो अशुभ दोषों को दूर कर देता है|

लाल किताब कहती है की शुक्र लग्न में हो और सातवां दसवां भाव खाली हो और जातक की शादी पचीसवें साल में हो जाए तो न तो जातक को धन का सुख मिलता है और न ही पत्नी से सुख मिलता है| लग्न में शुक्र के समय यदि राहू सप्तम भाव में हो तो जातक की ग्रहस्थीजीवन जलती हुई मिटटी के समान होता है ऐसे में जातक के देखने को तो सब कुछ होगा लेकिन जैसे की जमींदार की फसल पक कर तैयार हो और उसमे आग लग जाए जाए ऐसे ही ऐसे इंसान की जिन्दगी होगी| लग्न में शुक्र वाला जातक दिमाकी रूप से दूसरी स्त्रियों में विशेषकर रूचि लेता है| लाल किताब के अनुसार यदि आपका शुक्र अशुभ फल दे रहा है तो आपको विवाहिक जीवन में परेशानी का सामना करना पड़ता है | आप शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते है |

शुक्र के उपरलिखित शुभ फल उसी हालत में मिलते है जब वो अपनी खुद की राशि उंच राशि या मित्र की राशि में हो अन्य किसीराशि में होने परउसके शुभ फलों में काफी हद तक कमी हो जाती है जैसे की शुक्र जल तत्त्व ग्रह है और यदि वो अग्नि तत्व राशि जैसे मेष या सिंह में है तो उसके शुभ फल काफी हद तक कम हो जायंगे| साथ ही यदि राहू से द्रिस्ट है तो भी उसके शुभ फल कम हो जायेंगे|

लग्न में शुक्र के साथ सूर्य होने पर जातक का विवाहिक जीवन सुखमय नही होता| उसकी पत्नी को कोई न कोई दिक्कत रहती है या पत्नी से विचार नही मिलते यानी की पत्नी से सुख में कमी के योग बन जाते है|

मंगल शुक्र का योग जातक को शुभ फल ही देता है| हालांकि यदि ये योग दुस्प्र्भावी सिद्ध हो रहा हो तो जातक कई स्त्रीयों के साथ सम्बन्ध बनाता है| इस योग से जातक याजातिका में काम वासनाकी भावना काफी हद तक बढ़ जाती है | कई बार जातक को विवाहिक जीवन में दिक्कत दे देती है|बुद्ध शुक्र का योग जातक को शुभ फल ही देता है|

शुक्र शनी का योग जातक को बाहरी शानो शोकत अवस्य देता है चाहे जातक अंदरूनी तोर पर खुश्क पहाड़ जैसा हो| हालंकि इनदोनों का योग जातक की बड़ी अपनी से बड़ी उम्र की स्त्री के साथ सम्बन्ध अवस्य बनवा देता है|

शुक्र चन्द्र का योग होने पर जातक की माँ और पत्नी की आपस में कम बनती है याफिर दोनों में किसी एक को स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानी का सामना करना पड़ता है|
राहू का साथ शुक्र को शुभ फल कम ही देता है जीवन अस्त व्यस्त रहता है|

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