सभी देवी-देवताओं को शंख से जल चढ़ाना शुभ माना जाता है लेकिन भगवान भोले नाथ पर शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। इस संबंध में शिवपुराण में बताया गया है कि शंखचूड़ नाम का एक महापराक्रमी दैत्य था। शंखचूड़ दैत्यराज दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ ने घोर तपस्या कर विष्णु भगवान से तीनों लोकों के लिए अजेय और महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा था।
उधर शंखचूड़ ने जब बड़ा हुआ तो उसने पुष्कर में घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया। इसके लिए बृह्मा जी ने उसे श्रीकृष्ण कवच दिया और धर्मात्मज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी।
ब्रह्मा जी के आदेशानुसार तुलसी और शंखचूड़ का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के वरदान के मद में चूर शंखचूड़ ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया। भगवान विष्णु ने खुद शंखचूड़ के पिता दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था इसलिए देवताओं की मदद नही कर सकते थे। सभी देवता शिव जी के पास पहुंचे।
श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पाए तो भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का रूप धरकर शंखचूड़ से श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया। इसके बाद शंखचूड़ का रूप धरकर तुलसी के शील का हरण कर लिया।
इसी दौरान शिव शंकर मे शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था इसलिए लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है। शिव ने उसका वध किया था इसलिए शंख का जल शिव जी को नहीं चढ़ाया जाता है।
ॐ नमः शिवाय
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