1.सूर्य और राहु या केतु।
सूर्य ग्रहण योग या पितृ दोष।
फल।ऐसे जातक अपयशी । आखो में विकार।
पिता सुख में कमी।सरकारी नौकरी या राजनीति में असफल आदि।
2.चंद्र और राहु या केतु का योग।
चंद्र ग्रहण योग।
फल।माता को कस्ट।बचपन में निमोनिया से पीड़ित।जल से मृत्यु सम्भव।मन चंचल।दिमाग में बेचैनी।आदि।
3.मंगल और राहु या केतु।
अंगारक योग।
फल।जिस घर में बैठ जाये वहां का सत्यानाश।ब्लड समन्धी रोग।गुस्सैल।तुरंत गुस्सा हो जाने वाला।अगर मंगल बलवान हो और राहु कमजोर तो देश भक्त होता है।और मंगल अगर कमजोर हो जाएँ तो चोर गुंडा मवाली जुवारी। नशेड़ी ।देश द्रोही कपटी होता है।भाई का सुख ऐसे लोगों को नही मिलता।जीवन साथी से दुःखी।कठोर वाणी बोलता है।
4.बुध और राहु या केतु।
इस योग को शुभ कहा गया है परंतु अगर वहीं कालसर्प दोष हो तो स्थिति खराब ।बुध राहु या केतु का जिसमे भी योग बनाता है वे असाधारण प्रतिभा के स्वामी होते हैं।
5.गुरु और राहु या केतु
चांडाल योग।
फल।विद्या में बांधा ।पुत्र संतान से पीड़ित।रोगी।पेटू।गुरु की शिकायत करने वाला।गुरु द्रोही।लड़की हो तो बहुत खराब।पति सुख से वंचित।
6.शुक्र और राहु।
कलात्मक योग।
बहुत अच्छा माना गया है परंतु और कोई ग्रह न हो।कलाकार।फ़िल्म इंडस्टी।गायक।व्यापारी।
7 शनि और राहु।
ये योग भी अच्छा माना गया है।परंतु कुंडली देखकर ही इनके फलों का विचार होता है ।
जब भी कुंडली में ।उपरोक्त ग्रहण योग हो या अंगारक।या चांडाल।तुरंत शांति करा दें।
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