त्यौहार-व्रत

मल मास प्रारम्भ हो गया

Written by Bhakti Pravah

भगवान सूर्य संपूर्ण ज्योतिष शास्त्र के अधिपति हैं। सूर्य का मेष आदि 12 राशियों पर जब संक्रमण (संचार) होता है, तब संवत्सर बनता है, जो एक वर्ष कहलाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, वर्ष में दो बार जब सूर्य, गुरु की राशि धनु व मीन में होता है, उस समय को खर, मल व पुरुषोत्तम मास कहते हैं। इस
दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।

इस बार खर मास का प्रारंभ 16 दिसंबर, बुधवार से शुरू हुवा जो 14 जनवरी, 2016 गुरुवार को समाप्त होगा। इस मास की मलमास की दृष्टि से जितनी निंदा है, पुरुषोत्तम मास की दृष्टि से उससे कहीं श्रेष्ठ महिमा भी है। भगवान पुरुषोत्तम ने इस मास को अपना नाम देकर कहा है कि अब मैं इस मास का स्वामी हो गया हूं और इसके नाम से सारा जगत पवित्र होगा तथा मेरी सादृश्यता को प्राप्त करके यह मास अन्य सब मासों का अधिपति होगा। यह जगत पूज्य और जगत का वंदनीय होगा और यह पूजा करने वाले सब लोगों के दारिद्रय का नाश करने वाला होगा

जानिए खर मास में क्या करें- क्या नहीं

खर मास के संबंध में हमारे धर्मग्रंथों में अनेक नियम बताए गए हैं।महर्षि वाल्मीकि ने खर मास के नियमों के संबंध में कहा है

1. इस मास में सफेद धान, मूंग, जौ, शहतूत, ककड़ी, कटहल, आम,सौंठ, इमली, सुपारी,आंवला आदि भोजन पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

2. इसके अतिरिक्त मांस, शहद, चावल का मांड, चौलाई, उरद,
लहसुन, नागरमोथा, छत्री, नशे की चीजें, दाल, तिल का तेल और दूषित अन्न का त्याग करना चाहिए।

3. तांबे के बर्तन में गाय का दूध, चमड़े में रखा हुआ पानी और
केवल अपने लिए ही पकाया हुआ अन्न दूषित माना गया है।
इसलिए इनका भी त्याग करना चाहिए।

4. पुरुषोत्तम मास में जमीन पर सोना, पत्तल पर भोजन करना,
शाम को एक वक्त खाना, रजस्वला स्त्री से दूर रहना और
धर्मभ्रष्ट संस्कारहीन लोगों से संपर्क नहीं रखना चाहिए।

5. किसी प्राणी से द्रोह नहीं करना चाहिए। देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गाय, साधु-सन्यांसी, स्त्री और बड़े लोगों की निंदा नहीं करनी चाहिए।

इसलिए कहते हैं खर को पुरुषोत्तम मास

हिंदू धर्मशास्त्रों में खर मास को बहुत ही पूजनीय बताया गया है। खर मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। खर मास को पुरुषोत्तम मास क्यों कहा जाता है इसके संबंध में हमारे शास्त्रों में एक कथा का वर्णन है जो इस प्रकार है-
प्राचीन काल में जब सर्वप्रथम खर मास की उत्पत्ति हुई तो वह स्वामीरहित मल मास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कार्यों के लिए वर्जित माना गया। इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी। निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा और अपनी पीड़ा बताई। तब भगवान विष्णु मल मास को लेकर गोलोक गए। वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजडि़त आसन पर बैठे थे। भगवान विष्णु ने मल मास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा कि यह मल मास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा क्योंकि अब से मैं इसे अपना नाम देता हूं। यह जगत में पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात होगा। मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं। जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे। इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

Leave a Comment