मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकार की वाणी कैसे बोलता है ? और प्रथ्वी लोक के सभी जीव जन्तु की वाणी एक जैसी क्यो होती है ?
मनुष्य के मुख मे कंठ से होठों तक वाणी ही शब्दो की रचना करती है । ये शब्द नाभि से लेकर इडा , पिंघला और सुषुम्ना नाड़ी के साथ प्राणो से होते हुए मस्तिक तक जाते है । मस्तिक ही शब्दो का तारतम्य वाणी से करता है ।
मानव की वाणी का संबंध धुलोक से होता है । धुलोक का संबंध मनुष्य के चित के साथ होता है । चित का संबंध अहंकार से होता है और अहंकार का संबंध बुद्धि से होता है । बुद्धि का संबंध मन से होता है और मन का संबंध वाणी से होता है । जब मन चाहता है तो वाणी अपना शब्द उच्चारण करती है ।
यह सत्य है मनुष्य दो प्रकार की वाणी का प्रयोग करता है ।
1- पहली वाणी उसके जो चित मे संचित होती है
2- दूसरी वाणी जो मनुष्य प्रकृति से संगति से सीखता है ।
जानवरो और जीव जन्तुओ मे जो वाणी होती है वो वाणी उनके जन्म के साथ ही चित मे संचित होती है । उनकी वाणी पर दूसरे जानवर की वाणी की संगति का कोई असर नहीं होता है । क्योकि जानवर मे ज्ञान नही होता है । इसलिए जानवर अपने चित की वाणी को जाग्रत नही कर पाता है । इसलिए सभी जानवर एक जैसी वाणी का उच्चारण करते है ।
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