!! पुण्यकाल का महत्व !!
पंचांग के अनुसार सूर्य 14 जनवरी 2016 को आधी रात के बाद 1 बजकर 28 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगा इसलिए संक्रांति का त्योहार 14 को नहीं बल्कि 15 जनवरी को मनाया जाएगा। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार संक्रांति में पुण्यकाल का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में होता है, तो पुण्यकाल अगले दिन के लिए स्थानांतरित हो जाता है। इस साल मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायंकाल 5 बजकर 26 मिनट तक रहेगा।
भारत में लोग वर्षों से मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी को मनाते आए हैं, लेकिन बीते दो साल से यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया जा रहा है और इस साल 2016 में भी लगातार तीसरे साल 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी जाएगी। यह अजब संयोग वर्ष 2014 से शुरू हुआ था। हिन्दू पंचांग के अनुसार जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो यह घटना संक्राति कहलाती है। संक्राति का नामकरण उस राशि से होता है, जिस राशि में सूर्य प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य, धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
!! क्यों बदल जाती है तिथि !!
खगोलशास्त्रियों के अनुसार पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए 72 से 90 सालों में एक डिग्री पीछे हो जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता है यानी मकर संक्रांति का समय 72 से 90 साल में एक दिन आगे खिसक जाता है। 2016 के बाद 2019 और 2020 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी जाएगी। जबकि 2017 और 2018 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही पड़ेगी।
!! त्योहार एक, नाम अनेक !!
मकर संक्राति को देश में अलग-अलग जगहों पर अलग नामों से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल में जहां यह संक्रांति कहलाता है, वहीं बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह खिचड़ी पर्व के रूप में लोकप्रिय है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है, तो वहीं, गुजरात और आसपास के क्षेत्रों में इसे उत्तरायण पर्व कहते हैं।
।। शुभमस्तु ।।
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