जिला कांगड़ा के बैजनाथ में स्थित प्राचीन शिव मंदिर उत्तरी भारत का आदिकाल से एक तीर्थ स्थल माना जाता है। इस मंदिर में स्थित अर्धनारीश्वर शिवलिंग देश के विख्यात एवं प्राचीन ज्योती लिंग में से एक है। एक जनश्रुति के अनुसार द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञात वास के दौरान इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था, परन्तु वह पूर्ण नहीें हो पाया था स्थानीय लोगों के अनूुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहूक एवं मनूक नाम के दो व्यापारियों ने पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान शिव धाम के नाम से उत्तरी भारत में विख्यात है।
एक अन्य मान्यतानुसार राम रावण युद्व के दौरान रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर तपस्या की थी और भगवान शिव को लंका चलने का वर मांगा ताकि युद्व में विजय प्राप्त की जा सके। शिव भगवान ने प्रसन्न होकर रावण के साथ लंका एक पिंडी के रूप चलनें का वचन दिया और साथ में यह शर्त रखी कि वह इस पिंडी को कहीं जमीन पर रखकर सीधा इसे लंका पहुंचाएं।रावण शिव की इस अलौकिक पिंडी को लेकर लंका की ओर रवाना हुए रास्ते में कीेरग्राम (बैजनाथ) नामक स्थान पर रावण को लधुशंका लगी उन्होंने वहां खड़े व्यक्ति को थोडी देर के लिए पिंडी सौंप दी। लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा कि जिस व्यक्ति के हाथ में वह पिंडी दी थी वह लुप्त हो चुके हैं ओर पिंडी जमीन में स्थापित हो चुकी थी रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने का काफी प्रयास किया परन्तु उठा नहीं पाए। उन्होंने इस स्थल पर घोर तपस्या की और अपने दस सिर की आहुतियां हवनकुंड में डाली तपस्या से प्रसन्न होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर फिर से स्थापित कर दिए।
यहाँ श्रद्वालु शिंवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर बिल पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर शिव भगवान को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते है, शिवरात्रि एवं श्रवण मास में यह नगरी बम-बम भोले के उदघोष से शिवमयी बन जाती है, प्रदेश सरकार द्वारा इस मंदिर में कालातंर से मनाये जाने वाले शिवरात्री मेले के महत्व को देखते हुए इसे राज्य स्तरीय मेले का दर्जा प्रदान कर दिया है।
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