अध्यात्म

पूजा करते समय यदि मुंह

Written by Bhakti Pravah

1.पूजा करते समय यदि मुंह पूर्व में हो तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है।पूजा करने वाले का मुंह पश्चिम में हो तो अति शुभ रहता है इसके लिए पूजा स्थल का द्वार पूर्व की ओर होना चाहिए।
2.पूजा स्थान में महाभारत के रथ, फोटो, प्राणी पक्षी के चित्र अथवा वास्तु पुरुष की प्रतिमा न रखें।
3.पूजाकक्ष ईशान कोण में बनाएं और उसमें रखें भगवान जी के स्वरूपों को इस प्रकार से रखें कि वे एक दूसरे के आमने-सामने न हों।
4. घर के पूजाकक्ष में सार्वजनिक मंदिर की भांति गुम्बद, ध्वजा, कलश, त्रिशूल या शिवलिंग आदि नहीं रखने चाहिए।
5. बैडरूम में पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए परंतु मजबूरी वश बनाना ही पड़े तो पर्दे की व्यवस्था करनी चाहिए।
6. पूजाकक्ष को सफेद, हल्का पीला अथवा हल्का गुलाबी रंग से रंगवाना शुभ होता है ।
7. हमेशा ध्यान रखें कि शौचालय तथा पूजा घर पास-पास नहीं होना चाहिए।ऐसा होने पर मंदिर की पवित्रता भंग हो जाती है।
8. घर में जहां भी पूजा स्थल हो वहां कुछ हिस्सा खाली होना चाहिए।छोटी सी जगह मेंमंदिर नहीं बनवाना चाहिए। मंदिर के आसपास कम से कमइतनी जगह अवश्य रखें जहां आसानी सेबैठा जा सके।
9.घर में पूजा स्थल होना शुभता का परिचायक है इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। घर की पवित्रता भी बनी रहती है ।
10.मंदिर में नियमित रूप से अगरबत्ती, दीपक जलाने सेवातावरण सुगंधित और सूक्ष्म कीटाणुओं से रहित रहता है।कीटाणु घर में प्रवेश नहीं करते हैं और सदस्य हमेशा स्वस्थ रहते हैं। चिकित्सा संबंधी कार्यों में धन का व्यय नहीं होता है।
11.पूजा स्थल पूर्वी या उत्तरी ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में होना चाहिए चूंकि ईश्वरीय शक्ति ईशान कोण से प्रवेश कर नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) से बाहर निकलती है। इसका एक हिस्सा शरीर द्वारा ग्राह्य बायोशक्ति में बदलकर जीवनोपयोगी बनता है।
12.पूजा स्थल के नीचे कोई भी अग्नि संबंधी वस्तु जैसे इन्वर्टर या विद्युत मोटरनहीं होना चाहिए। इस स्थान का उपयोग पूजन सामग्री,धार्मिक पुस्तकें, शुभ वस्तुएं रखने में किया जाना चाहिए

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