स्वास्थय

पक्षाघात (paralysis)

Written by Bhakti Pravah

इस रोग को लकवा, पक्षबंध, एकांग रोग और फालिज आदि नामों से जाना जाता है। इसी प्रकार सर्वांग रोग, सर्वांगघात अथवा लकवा भी होता है। इस प्रकार पक्षाघात को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
1. अंग विशेष का पक्षाघात।
2. सर्वांग का पक्षाघात।
पक्षाघात के सामान्य कारण व लक्षण :-
प्रिय समूह के सदस्यो ! पक्षाघात चाहे किसी भी प्रकार का हो, सामान्यतः निम्नलिखित कारण व लक्षण होते हैं।

अंग विशेष का पक्षाघात :-  उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रोल का बढ़ना जिससे रक्त संचार में बाधा होने के कारण जिस अंग विशेष हाथ, पैर, जीभ, मस्तिष्क आदि में रक्त भ्रमण अवरुद्ध हो जाता है। वहां शून्यता होकर अंग विशेष पक्षाघातग्रस्त हो जाता है।
मनुष्य को जब लकवा (अर्दित) तब उसका आधा मुख टेढ़ा हो जाता है, गर्दन टेढ़ी हो जाती है, सिर कांपने लगता है, रोगी बोल नहीं सकता है। आँख, नाक, कान तथा भौंह और गाल में वेदना होती है तथा ये टेढ़े हो जाते हैं और फड़कते हैं। अर्दित रोग चेहरे या मुख के जिस तरफ हो उस और की गर्दन, ठोड़ी और दांतों में पीड़ा होती है।

ये रोग तीन प्रकार का होता है।
1. वातज 2. पित्तज 3. कफज
वातज अर्दित से पीड़ित रोगी के मुख से लार गिरती है, पीड़ा होती है, नसें फड़कती हैं, कंपकपी आती है, थोड़ी जकड जाती है, बोलने में कठनाई होती है और होंठ सूज जाते हैं।
पित्तज अर्दित वाले रोगी का मुंह पीला हो जाता है, बुखार चढ़ जाता है, प्यास अधिक लगती है तथा बेहोशी और जलन होती है।
कफज अर्दित रोगी के गले और मन्या नाड़ी में स्तम्भ होता है।

उपचार :- सर्वप्रथम रोगी की उदरशुद्धि हेतु कोई मृदु विरेचन देना चाहिए। इसके लिए अरण्ड तेल ही अधिक उपयुक्त है। इसके पश्चात औषद्धि प्रयोग करें। चिकित्सा के दौरान बीच बीच में उपरोक्त ढंग से विरेचन देते रहें।
वृहतवात चिंतामणिरस एक ग्राम, रसराज एक ग्राम, विषमुष्टिका वटी दो ग्राम, एकांगवीर रास तीन ग्राम, रास्नादि गुग्गल चार ग्राम, महा योगराज गुग्गल पांच ग्राम लेकर सभी को खरल कर सोलह केप्सूल में भरकर सुबह शाम पानी से दे।
वृहत वात चिंतामणिरस या वीर योगेन्द्ररस की एक एक गोली भी सुबह शाम शहद से चटायें।
रोगी को कब्ज न होने पाये, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोगी को मिस्सी रोटी व घी का सेवन कराएं। मुंग दाल और हरी सब्जियां आदि सुपाच्य भोजन दें। लाल मिर्च, गुड़ शक्कर, अचार, चावल, दही, बैंगन आदि से परहेज रखें। ठन्डे पानी और ठंडी वायु से रोगी को बचाएं।

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