एक दिन संयोग से एक तंग रास्ते में काशी नरेश और कौशल नरेश के रथ आमने-सामने आ पहुंचे। दोनों असमंजस में थे कि दोनों में से पहले रास्ता कौन किसको दे।
मामला गंभीर हो गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए दोनों राजाओं के सलाहकारों ने तय किया जो नरेश उम्र में सबसे छोटा होगा। वह बड़े नरेश को जाने देगा।
लेकिन यहां एक और संयोग था क्यों कि दोनों नरेश की उम्र समान थी। बात राज्य तक आ पहुंची। जिसका राज्य बड़ा वो पहले जाएगा अब यह तय हुआ। यह भी समान निकला। इसके बाद सलाहकारों ने तय किया कि जो राजा सबसे गुणी होगा वो सबसे पहले जाएगा।
दोनों राजाओं के चापलूस लोग अपने-अपने राजाओं के गुणों की प्रसन्नता करने लगे। कौशल नरेश के सारथी ने कहा, ‘ हमारे राजा अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा व्यवहार करते हैं।
तब काशी नरेश के सारथी ने कहा, ‘हमारे राजा सभी तरह के लोगों के साथ सद्व्यवहार कर उनका हृदय जीत लेते हैं।’
कौशल नरेश ने जब यह बात सुनी तो उन्होंने कहा, ‘पहले काशी नरेश का रथ ही निकलेगा। क्योंकि सद्व्यवहार और विनम्रता ही मनुष्य का सबसे श्रेष्ठ गुण है।’
दुनिया में इंसान का सर्वश्रेष्ठ गुण सद्व्यवहार और विनम्रता है। इसके न होने से इंसान कुछ भी नहीं।
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