पद्मपुराण में तुलसी को पूर्वजन्म में जालंधर नामक दैत्य की पत्नी वृंदा बतलाया गया है । जालंधर को हराने के लिए विष्णु ने वृंदा का सतीत्व भंग किया और फिर उन्हीं के वरदान से वह तुलसी का पौधा बनकर समस्त लोक में पूजी जाने लगी ।
प्राचीन मान्याताओं के अनुसार हर हिंदू घर के आंगन में कम से कम एक तुसली का पौधा अवश्य होना चाहिए । कार्तिक मास में तुलसी का पौधा लगाने का बड़ा महत्त्व माना गया है । स्कंदपुराण में लिखा है कि इस मास में जो जितने तुलसी के पौधे लगाता है, वह उतने ही जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है । पद्मपुराण में उल्लेख है कि जिस घर में तुलसी का उद्यान होता है, वह तीर्थरूप होता है और उसमें यमराज के दूतों का प्रवेश नहीं होता । जिस घर की भूमि (आंगन) तुलसी के नीचे की मिट्टी से लिपी रहती है, उसमें रोगों के कीटाणु प्रवेश नहीं करते ।
तुलसी के पत्ते यानी तुलसीदल का भी काफी महत्त्व माना जाता है । जो व्यक्ति सदैव तीनों समय तुलसीदल का सेवन करता है, उसका शरीर शुद्ध हो जाता है । जो व्यक्ति स्नान के जल में तुलसी डालकर उपयोग में लाता है । वह सब तीर्थों में नहाया हुआ समझा जाता है और जब यज्ञों में बैठने का अधिकारी बनता है । जो व्यक्ति तुलसीदल मिश्रित चरणामृत का नियमित सेवन करता है, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर अंत में सद्गति को प्राप्त करता है, वह शारिरिक विकारों व रोगों से बचता है और अकालमृत्यु को प्राप्त नहीं होता । प्रत्येक पूजा पाठ और प्रसाद में तुलसीदल का उपयोग करने का विधान है । मरते हुए व्यक्ति के मुख में तुलसीदल और गंगाजल डालने से त्रिदोष नाशंक औषधि बन जाती है और आत्मा पवित्र होकर मुक्त होती है दूषित जल के शोधन हेतु तुलसीदल डाला जाता है ।
हर शाम तुलसी के पौधे की पूजा, आरती और उसके नीचे दीपक जलाने से सती वृंदा की कृपा मिलती है और भगवान विष्णु स्वयं उसकी रक्षा करते हैं । वृंदा की भक्ति और विष्णु के प्रति उसका समर्पण तुलसी की सुगंध और उसके पत्तों में आ गई, ऐसा कहा जाता है । सोमवती अमावस्या को तुलसी की 108 परिक्रमा करने का विधान है । परिक्रमा से दरिद्रता मिटती है । हजारों घड़े अमृत से नहलाने पर भी भगवान श्रीहरि को उतनी तृप्ति नहीं होती है, जितनी वे तुलसी का एक पत्ता चढ़ाने से प्राप्त करते हैं । जो भगवान श्रीहरि नारायण की पूजा करता है, वह लाख अश्वमेध – यज्ञों का फल पा लेता है । मृत्यु के समय जिसके मुख में तुलसी के जल का एक कण भी चला जाता है, वह अवश्य ही विष्णुलोक जाता है ।
पद्मपुराण के सर्वमास विधिवर्णन में कहा गया है कि धात्री के फलों से युक्त तुलसी के दलों से मिले हुए जल से जो कोई भी मानव स्नान किया करता है । उसका भागीरथी गंगा के स्नान का पुण्यफल प्राप्त होता है ।
Leave a Comment