अध्यात्म

तंत्र विद्या से नशा अथवा चारित्रिक दोष से मुक्ति भी संभव है

Written by Bhakti Pravah

तंत्र मुक्ति का मार्ग है |जीवन से मुक्ति का मार्ग है |मुक्ति से मोक्ष का मार्ग है |हर दुःख से मुक्ति का मार्ग है |हर संकट से मुक्ति का मार्ग है |हर विपदा से मुक्ति का मार्ग है |किसी भी प्रकार की समस्या से मुक्ति का मार्ग है |जीवन में समस्त भोग-उपभोग प्राप्त करते हुए ,अंततः जीवन-मरण के चक्र से ही मुक्ति का मार्ग है |इससे किसी भी कष्ट से मुक्ति पायी जा सकती है ,चाहे कष्ट भौतिक हो या अभौतिक |चाहे कष्ट लौकिक हो या अलौकिक |तंत्र महान महासागर है |यह ऐसी विधा है जिसमे मंत्र-यन्त्र-पदार्थ-वनस्पति-जीव-शरीर सब सम्मिलित हैं ,अतः सभी प्रकार के कष्टों की भी मुक्ति इससे मिल जाती है |अब यह अपनी-अपनी क्षमता और ज्ञान पर निर्भर करता है की कौन कितना इसका लाभ उठा पाता है और कौन कितना सफल हो पाता है |

आज के समय में दो प्रकार के दोष लगभग ९०% घरों को किसी न किसी रूप में प्रभावित कर रहे हैं नशे की लत किसी न किसी प्रकार की अथवा चारित्रिक दोष किसी न किसी तरह ,जैसा की हमारे पास समस्या लेकर आने वाले बताते हैं |जो लोग आते हैं उनमे इनकी अधिकतर संख्या देखकर ही हम यह लेख लिखने को इच्छुक हुए हैं |नशा आज के समाज में कोढ़ की तरह फ़ैल गया है और समाज को खोखला करता जा रहा है |अधिकतर घर इससे त्रस्त हैं |नशे की उपज दिमाग से होती है |तनाव से राहत पाने के लिए अथवा थोडा आनंद के लिए शुरू हुई नशे की शुरुआत अंततः ऐसी लत बन जाती है की व्यक्ति इसे छोड़ नहीं पाता और अपना समय-धन-प्रतिष्ठा-सफलता-स्वास्थय खराब करता चला जाता है ,साथ जुड़े लोग भी उससे कष्ट पाते हैं ,चाहे शारीरिक अथवा मानसिक ही सही |सबसे अधिक कष्ट माता-पिता ,पत्नी-पति अथवा बच्चों को होती है |

इसी प्रकार चारित्रिक दोष परिवार में तनाव और बिखराव का कारण बन रहा है |पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण सबमे एक अलग ही आकांक्षा उत्पन्न कर रहा है |आज के समाज और लोगों में चरित्र के प्रति दृढ़ता और नैतिकता का क्षरण हो रहा है |शहरों में कई लोगों से सम्बन्ध रखना आधुनिकता की निशानी बनता जा रहा है |स्त्री-पुरुष विवाह बिना साथ रहने लगे हैं |पति को पत्नी पर ,पत्नी को पति पर इस चारित्रिक दोष के कारण आज अविश्वास उत्पन्न हो रहा है| घरों में तनाव हो रहा है ,घर टूट रहे हैं |

तंत्र में इन समस्याओं के समाधान हैं |सीधे तौर पर भी इनके उपाय हैं और अप्रत्यक्ष तौर पर भी |नशा अथवा चारित्रिक दोष से मुक्ति के लिए समस्या विशेष के लिए विविध प्रकार की तांत्रिक क्रियाएं होती हैं |सीधे तौर पर समस्या विशेष के लिए की जाने वाली अधिकतर इस प्रकार की क्रियाएं उच्चाटन तंत्र के अंतर्गत आती हैं अर्थात उस समस्या का व्यक्ति से उच्चाटन करना अर्थात हटाना अर्थात मन उसके प्रति विपरीत करना |इसमें विभिन्न तरह की क्रियाये की जा सकती हैं जिसमे सम्बंधित नशीली वस्तु के साथ निश्चित प्रक्रिया व्यक्ति के साथ की जाती है ,किसी में व्यक्ति यह सब जानता है किसी में नहीं जानता |किन्तु यह सब अच्छे जानकार के मार्गदर्शन में ही करने योग्य होती हैं क्योकि यह तांत्रिक क्रियाएं हैं और षट्कर्म है अतः सावधानी आवश्यक होती है |

इनमे किसी न किसी रूप में किसी न किसी शक्ति का सहारा लिया जाता है अतः शक्ति के अनुकूल आचरण और क्रिया की आवश्यकता होती है |नशे से मुक्ति के लिए की गयी क्रिया से व्यक्ति के मन में उस नशे के प्रति अरुचि और घृणा उत्पन्न हो जाती है और वह उसे अच्छा नहीं लगता |क्रिया की सफलता पर व्यक्ति ऐसे लोगों से भी दूर हो सकता है जो इस नशे के लती हों |इसी प्रकार चारित्रिक दोष के लिए उच्चाटन की क्रिया ही सीधे तौर पर की जाती है |चारित्रिक दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए निश्चित प्रक्रिया अपनाई जाती है जिससे उसमे भी अरुचि उत्पन्न होती है |इसमें सम्बंधित व्यक्तियों के बीच मन उचटाया जा सकता है |इसमें एक और क्रिया का उपयोग किया जाता है विद्वेषण ,दो व्यक्तियों में विद्वेष करा देना |इन क्रियाओं में भी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों से सम्बंधित वस्तुएं प्रयोग में ली जाती हैं |निश्चित तांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती है |मानसिक उच्चाटन किसी दुर्गुण के प्रति कराया जाता है |यह साढ़े और अच्छे जानकार के वश की ही बात होती है |

अप्रत्यक्ष क्रिया में वशीकरण -आकर्षण आदि क्रियाओं की सहायता ली जाती है |व्यक्ति को पहले अपने वशीभूत करके अपनी बात मानने पर मजबूर किया जाता है |धीरे-धीरे व्यक्ति सम्बंधित दोष से मुक्त हो जाता है किसी और के लगाव के वशीभूत होकर |अप्रत्यक्ष क्रिया में सर्वाधिक प्रभावकारी क्रिया होती है व्यक्ति की अंतर्चेतना जगा देना अर्थात व्यक्ति की सोचने-समझने-विश्लेषण करने-अपना अच्छा-बुरा समझने की शक्ति जागृत कर देना जो की उसके नशे अथवा चारित्रिक दोष के दुर्गुण के कारण दब जाती है |यदि व्यक्ति की चेतना जाग जाए और वह अपने अच्छे -बुरे ,लाभ -हानि ,यश-अपयश के प्रति सचेत हो जाए तो वह खुद अपने दुर्गुण और दोष से बचने का प्रयत्न करने लगता है और उससे मुक्त हो जाता है |

अतः उसकी चेतना जगाकर उसे सचेत-सजग करना बहुत लाभप्रद रहता है |हमारे द्वारा की गयी क्रियाओं में यह शत-प्रतिशत सफल रहा है |अतः इसके प्रभाव को हम बहुत असरकारक मानते हैं |इस क्रिया में सौम्य किन्तु उच्चतर शक्ति की सहायता ली जाती है |जैसे श्री विद्या,बागला,मातंगी आदि |यह शक्ति व्यक्ति की चेतना जगाकर उसे उन्नति के लिए सजग कर देती है |उसके ऊपर और आसपास की नकारात्मक शक्तियों और प्रभावों को हटा देती है |किसी के किये हुए अभिचार को दबा देती है |व्यक्ति की समझ और सोच को विकसित कर उसे बढ़ा देती है |व्यक्ति खुद के प्रति सजग हो जाता है ,अपने अच्छे-बुरे के प्रति सचेत हो जाता है ,अपना लाभ और हानि उसे दीखता है ,यश-अपयश को गंभीरता से समझता है ,अपने कर्म की सार्थकता और निरर्थकता उसे समझ में आने लगती है |अपने संस्कार और संस्कृति के प्रति सजग हो जाता है |सारे नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो सकारात्मक प्रभाव विकसित होने से अंततः वह इन दुर्गुणों से खुद दूर हो जाता है |

अतः यदि तंत्र को गंभीरता से लिया जाए और किसी अच्छे जानकार की देख रेख में ,मार्गदर्शन में उपरोक्त समस्याओं से सम्बंधित क्रियाएं की जाए तो ,इन समस्याओं से अपने परिजनों को मुक्त किया और कराया जा सकता है |दवाओं के लाभ तात्कालिक होते हैं ,वह व्यक्ति की मानसिकता को नहीं बदल सकते किन्तु तंत्र व्यक्ति के शरीर और कार्यप्रणाली को लक्ष्य करता है ,अतः यह शारीरिक कार्यप्रणाली ,रासायनिक क्रियाओं के साथ ही मानसिक रुचियों और विश्लेषण की क्षमता में भी परिवर्तन कर सकता है |अतएव इससे व्यक्ति स्थायी रूप से लाभान्वित होता है |

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