चलती चक्की देख के ,दिया कबीरा रोये .
दो पाटन के बीच में ,साबुत बचा ना कोए .
चलती चक्की को देख कर कबीर जी बोलते हैं ये जो दो पाट हैं इनमे कोई साबुत नहीं बच पता ,केवल वेह ही बच सकता है जो बीच में समां जाये ,चक्की के मध्य में चक्की कील से जुडी होती है वहां जो भी अनाज चला जाता है वेह बच जाता है , दो पाटो की तुलना कबीर जी ने द्वन्द से करी है सुख दुःख, लाभ हानी,मेरा पराया ये सब दो पाट हैं इन से परे जो निकल गया वेह बच सकता है ! बच सकता है का अर्थ है की वेह परम ज्ञान को उपलब्ध हो सकता है जिसे कृषण ने साक्षी भाव कहा है !
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