सृष्टि में व्याप्त अधंकार को दूर करते हैं सूर्य देव। ऋषि-मुनि सूर्योदय से पूर्व या ठीक सूर्योदय के समय स्नान करते थे और स्नान के बाद सूर्य को अर्र्घ्य अर्पित करते थे। सभी ग्रहों के राजा हैं सूर्य। नित्य निरंतर दर्शन प्रदान करते हैं। सनातन धर्म से संबंधित धार्मिक ग्रंथों में भगवान सूर्य के अर्र्घ्यदान का विषद् वर्णन उपलब्ध है।
अर्र्घ्य सुबह को एक पैर के आधा भाग को उठा कर रक्तचंदन आदि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रखे जल या हाथ की अंजुलि से तीन बार जल में ही यह मंत्र पढ़ते हुए देना चाहिए- ‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।’ ‘ब्रह्मस्वरूपिणे सूर्यनारायणाय इदमर्ध्य दत्तं न मम।’ दोपहर को ब्रह्मस्वरूपिणे की जगह पर विष्णुस्वरूपिणे और सायंकाल में रुद्रस्वरूपिणे कहना चाहिए। खडे़ होकर दोपहर को अंजुलि से केवल एक बार जल में और सायंकाल में साफ-सुथरी भूमि पर बैठ कर तीन बार अंजुलि से जल भरकर अर्घ्य देना चाहिए। ध्यान रखें जल पैरों का स्पर्श न करे। बेहतर हो कि आप किसी बर्तन में अर्घ्य देकर बाद में उसे वृक्ष की जड़ में डाल दें।
इस अर्घ्यदान से भगवान सूर्य प्रसन्न होकर लंबी आयु, आरोग्य, धन, उत्कृष्ट संतान, मित्र, तेज, वीर्य, यश, कांति, विद्या, वैभव और सौभाग्य प्रदान करते हैं। जिन लोगों का मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु लग्न है, उन्हें तो निश्चित ही सूर्योपासना करनी चाहिए। साथ ही जिन-जिन की कुंडली में सूर्य अपनी नीच राशि तुला में हैं, उन्हें भी नित्य सूर्य की पूजा करनी चाहिए। साथ ही जिनकी कुंडली में सूर्य देव राहु-केतु, शनि के साथ हैं, उन्हें भी नियम से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व ही शैया त्याग कर शुद्ध स्नान करना चाहिए। रविवार और भगवान सूर्य की प्रिय तिथि सप्तमी को नीले रंग के वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। स्मरण रहे महर्षि अगस्त्य के कहने पर आदित्य हृदय स्तोत्र का लगातार तीन बार पाठ करने के कारण ही सूर्यवंशी भगवान राम लंकापति रावण का वध करने में सफल हुए। रविवार को तेल, नमक नहीं खाने से भी सूर्य नारायण प्रसन्न होते हैं। इनके बहुत से मंत्र हैं, लेकिन ‘ऊं घृणि सूर्य आदित्य ऊं’ का आधिकांश सनातनधर्मी जाप करते हैं।
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