अध्यात्म

क्यों मर्यादापुरुषोत्तम है श्रीरामजी

Written by Bhakti Pravah

भारतीय संस्कृति में भगवान राम जन-जन के दिलों में बसते हैं। इसके पीछे मात्र धार्मिक कारण ही नहीं है, बल्कि श्रीराम चरित्र से जुड़े वह आदर्श हैं, जो मानव अवतार लेकर स्थापित किए गए। सीधे शब्दों में श्रीराम मर्यादित जीवन और आचरण से ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। लेकिन ऐसे ऊंचे पद तक पहुंचने के लिए श्रीराम ने किस तरह के जीवनमूल्य स्थापित किए? जानते हैं कुछ ऐसी ही बातें –

धार्मिक दृष्टि से श्रीराम भगवान विष्णु का सातवां अवतार हैं। भगवान का इंसान रूप में यह अवतार मानव को समाज में रहने के सूत्र सिखाता है। असल में भगवान श्रीराम ने इंसानी जिंदगी से जुड़ी हर तरह की मर्यादाओं और मूल्यों को स्थापित किया।

श्रीराम ने अयोध्या के राजकुमार से राजा बनने तक अपने व्यवहार और आचरण से स्वयं मर्यादाओं का पालन किया। एक आम इंसान परिवार और समाज के बीच रहकर कैसे बोल, व्यवहार और आचरण को अपनाकर जीवन का सफर पूरा करे, यह सभी सूत्र श्रीराम के बचपन से लेकर सरयू में प्रवेश करने तक के जीवन में छुपे हैं।

धार्मिक और आध्यात्मिक नजरिए से भी श्रीराम के जीवन को देखें तो पाते हैं कि श्रीराम ने त्याग, तप, प्रेम, सत्य, कर्तव्य, समर्पण के गुणों और लीलाओं से ईश्वर तक पहुंचने की राह और मर्यादाओं को भी बताया।

अयोध्या के राजा बनने के बाद मर्यादा, न्याय और धर्म से भरी ऐसी शासन व्यवस्था स्थापित की, जिसकी आर्थिक, सामजिक और राजनीतिक मर्यादाओं ने हर नागरिक को सुखी, आनंद और समृद्ध कर दिया। श्रीराम का मर्यादाओं से भरा ऐसा शासन तंत्र आज भी युगों के बदलाव के बाद भी रामराज्य के रूप में प्रसिद्ध है।

इस तरह मर्यादामूर्ति श्रीराम ने व्यक्तिगत ही नहीं राजा के रूप में भी मर्यादाओं का हर स्थिति में पालन कर इंसान और भगवान दोनों ही रूप में यश, कीर्ति और सम्मान को पाया।

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