हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु जगत का पालन करने वाले देवता है। भगवान विष्णु का स्वरूप सात्विक यानी शांत, आनंदमयी और कोमल बताया गया है। वहीं दूसरी ओर भगवान विष्णु के भयानक और कालस्वरूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हुए भी दर्शन किए जा सकते हैं।
भगवान विष्णु के इसी स्वरूप के लिए शास्त्रों में लिखा गया है – शान्ताकारं भुजगशयनं यानी शांत स्वरूप और भुजंग यानी शेषनाग पर शयन करने वाले देवता भगवान विष्णु।भगवान विष्णु के इस अनूठे स्वरूप पर गौर करें तो यह प्रश्न या तर्क भी आता है कि आखिर काल के साये में रहकर भी क्या कोई बिना किसी बेचैनी के शयन कर सकता हैं? क्या है भगवान विष्णु के शेषनाग पर सोने से जुड़ा रहस्य?
जिंदगी का हर पल कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। इनमें पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक दायित्व अहम होते हैं। किंतु इन दायित्वों को पूरा करने के साथ ही अनेक समस्याओं व परेशानियों का सिलसिला भी चलता रहता है, जो कालरूपी नाग की तरह भय, बेचैनी और चिन्ताएं पैदा करता है। इनसे कईं मौकों पर व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता है।
भगवान विष्णु का शांत स्वरूप यही कहता है कि ऐसे बुरे वक्त में संयम, धीरज के साथ मजबूत दिल और ठंडा दिमाग रखकर जिंदगी की तमाम मुश्किलों पर काबू पाया जा सकता है। तभी विपरीत समय भी आपके अनुकूल हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति सही मायनों में पुरूषार्थी कहलाएगा।
इस तरह विपरीत हालातों में भी शांत, स्थिर, निर्भय व निश्चित मन और मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन यानी जिम्मेदारियों को पूरा करना ही विष्णु के भुजंग या शेषनाग पर शयन का प्रतीक है।
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