ध्यान यानी मेडिटसन की बहुत सारी विधियाँ इस संसार मे मोजूद है । कुछ गुरु नाच गाने और संगीत के माध्यम से ध्यान सीखते है । तो कुछ भक्ति भाव से ध्यान लगवाते है और कुछ गुरु वैज्ञानिक आधार पर ध्यान की विधि बताते है । अष्टांग योग की ध्यान विधि सर्वश्रेथ होती है लेकिन यह प्रक्रिया थोड़ी कठिन अवश्य होती है ।
वैज्ञानिक आधार पर ध्यान दो प्रकार होता है । पहला बाहरी प्राकृतिक चेतन अबस्था का ध्यान और दूसरा अचेतन अवस्था का अंतर ध्यान । इन दोनों प्रकार के ध्यानों को समझना जरूरी है । जन मन बाहरी किसी चीज़ पर कुछ देर तक केन्द्रित होता है तो उसको बाहरी ध्यान कहते है । जैसे आप किसी चीज़ को टक टकी बांध कर देखते हो तो उस समय आपको कुछ न दिखाई देता है और न कुछ सुनाई देता है । उस समय आपकी आंखे ठहर सी जाती है । उसे बाहरी ध्यान कहते है । इस ध्यान मे मन बाहरी दुनिया की किसी बस्तु से एकाग्रता से ध्यान मग्न होता है । तथा इंद्रियाँ ठहर जाती है । लेकिन इस ध्यान का कोई लाभ नहीं है । यह तो क्षण पर मे टूट जाता है ।
अंतेरध्यान मे मन को शरीर के भीतर होने वाले अदृश्य कार्यो पर केन्द्रित किया जाता है । जैसे आप खाना जाते हो तो बहुत ध्यान से खाते हो लेकिन जब वह खाना अंदर चला जाता है तो आपका ध्यान वहाँ नहीं जाता है आप लापरवाह हो जाते हो । कैसे खाना अंदर गया है , खून कैसे बन रहा है , पाचन क्रिया कैसे काम कर रही है , खाना मल मूत्र मे कैसे बदल रहा है ।
जब मन शरीर के भीतर इन क्रियाओं को देखता है या इन क्रियाओ पर बहुत लंबे समय तक एकाग्र होता है तो उसको अंतेर्ध्यान कहते है । जब मन अंतेर्ध्यान मे चला जाता है तो हमारा शरीर बाहरी क्रियाओं से मुख्त हो जाता है । उस समय आप मन को विचार शून्य कर सकते हो या मन को ज्ञान के क्षेत्र मे ले जा सकते हो । यह आपकी इच्छा के उपर निर्भर करता है कि आप ध्यान मे क्या करना चाहते है ।
ध्यान मे एकाग्रता के कुछ उदाहरण –
अगर आप अंतिरिक्ष मे भ्रमण करना चाहते हो तो आपको ध्यान मे यह कल्पना करनी चाहिए । कि आपके ब्रह्मरंध्र यानी सहस्रार चक्र यानी मस्तिक के उपरी भाग मे एक 7 रंग का बल्ब लगा हुआ है और वह बल्ब घूम रहा है । उसको आप देख रहे है कि बार बार एक लाल रंग की लाइट आती है फिर दूसरे हरे रंग की लाइट आती है फिर तीसरे पीले रंग की लाइट आती है । ऐसा करने से आपका मन उस बल्ब पर केन्द्रित रहेगा और धीरे धीरे मन बल्ब के माध्यम से ध्यान मे परवर्तित हो जाएगा । और ध्यान का संपर्क धुलोक से हो जाएगा । फिर आप जो देखना चाहते हो कि अमेरिका मे क्या हो रहा है वो भी देख सकते हो ।
अगर आप शरीर के भीतरी भाग की जानकारी चाहते हो तो आपको अपने ध्यान को हृदय चक्र पर केन्द्रित करना चाहिए । और अंतरध्यान मे यह देखना चाहिए कि हृदय किस प्रकार गति कर रहा है । इसका संपर्क कहाँ कहाँ पर है । खून को किस प्रकार गति देता है तथा प्राण हृदय को कैसे चलाते है । बार बार ऐसे ही ध्यान लगाने से आपको शारीरिक रचना की जानकारी अंतेर्ध्यान से मिले जाएगी ।
इसी प्रकार सभी चक्रो पर तथा सभी इंद्रियों पर ध्यान को केन्द्रित करना चाहिए । यह अभ्यास रोजाना करना चाहिए । इस ध्यान विधि से आपको कर्ण पिशाचनी सिद्धि , स्वर विज्ञान , आयुर्वेद विज्ञान , जल विज्ञान , वशीकरण विज्ञान , सम्मोहन विज्ञान , घ्राण विज्ञान , दिव्य द्रष्टि और किताबी ज्ञान से दूर हटकर एक ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो जाएगी । पहले यह ध्यान का अभ्यास किसी एक विषय पर करना चाहिए ।
डॉ एच एस रावत ( वैदिक & आध्यात्मिक फ़िलॉसफ़र )
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