काम की ऊर्जा ही ऊर्ध्वगमन करके ब्रह्मचर्य के उच्चतम शिखरों को छूती है | जीवन में किसी से भागना नहीं है, किसी को छोड़ना नहीं है | जीवन को पूरा ही स्वीकार करके जीना है | उसको जो समग्रता से जीता है, वही कृष्ण की तरह पूर्णता को प्राप्त करता है |
अगर युद्ध के न होने से शांति खंडित हो रही हो, तो फिर एक निर्णायक युद्ध की सामर्थ्य चाहिए | हमारा देश एक हजार साल तक गुलाम रहा, यह हमारी युद्ध क्षमता की क्षीणता का परिणाम था | जो कौम मरने से डर जाए, युद्ध से डर जाए, वह बहुत गहरे में जीने से भी डरती है | न हम जी रहे हैं और न मर रहे हैं | ऐसी स्थिति में कृष्ण को समझना बहुत आवश्यक है | कृष्ण न तो युद्धवादी थे और न शांतिवादी | असल में वाद का मतलब होता है, दो में से एक को चुनना | कृष्ण अ-वादी थे | अगर शान्ति से शुभ फलित होता हो तो उसका स्वागत, और अगर युद्ध से शुभ फलित हो तो उसका भी स्वागत | अगर हमारा देश कृष्ण को ठीक से समझा होता तो हम इस भाँती नपुंसक न हो गए होते | हमारी अहिंसा की बात के पीछे हमारी कायरता छुप कर बैठ गई है | हमारे युद्ध न करने से युद्ध बंद नहीं होता | हम लड़ने न जाए इससे लड़ाई बंद नहीं होती, केवल हम गुलाम बनते हैं | बड़े मजे की बात है | हम नहीं लड़े, कोई हम पर हावी हो गया, हमें गुलाम बना लिया और फिर हम उसकी फ़ौज में शामिल होकर उसकी तरफ से दूसरों से लड़ते रहे | हम गुलाम भी रहे और अपनी गुलामी बचाने के लिए लड़ते रहे | कभी हम मुग़ल की फ़ौज में लड़े तो कभी अंग्रेज की फ़ौज में | नहीं लड़े तो केवल अपनी स्वतंत्रता के लिए | अगर शान्ति बनाए रखना है तो युद्ध की सामर्थ्य भी रखनी होगी | और अगर युद्ध जारी रखना है तो उसके लिए शान्ति में भी तैयारी करनी होगी | ये दो पैर हैं जीवन के | एक को भी काटा तो लंगड़े और पंगु हो जायेंगे | जब हिटलर, मुसोलिनी और स्टालिन युद्ध कर लेते हैं तब रसेल या गांधी की बात अपील करने लगती है | दस बीस साल इनकी बात अपील करती है | लंगडा पैर इससे अधिक नहीं चल पाता | फिर कोई माओ खडा होता है और दूसरे पैर की जरूरत पड जाती है | कृष्ण कहते हैं कि शुभ को भी हाथ में तलवार लेने की हिम्मत रखनी चाहिए | निश्चित ही शुभ जब हाथ में तलवार लेता है, तो किसी का अशुभ नहीं होता | अशुभ न जीत पाए इसलिए लड़ाई है |
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