भारतीय सनातन संस्कृति को वेदों द्वारा ज्योतिष की ऐसी देन दी गई है। जिसकी तुलना अमृत रूप से की जा सकती है। ज्योतिष को वेदों की आंखें कहा गया है क्योंकि ज्योतिष व्यक्ति के भूत, भविष्य व वर्तमान को देखकर व्यक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। ज्योतिष हमें जीवन के हर पहलू से जुड़े आशय बताता है। आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए यह भी बताता है।
मानव जीवन का कोई भी पहलू ज्योतिष से अछूता नहीं है। यहां तक की व्यक्ति जो कपड़े पहनता है उस पर भी ज्योतिष अपना प्रभुत्व रखता है हम सभी अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र खरीदते हैं और उन्हें पहनते हैं। वस्त्र व्यक्ति की शोभा भी बढाते हैं साथ-साथ उसके सामाजिक प्रभाव में भी वृद्धि करते हैं। आप जानते हैं की आप कोरे कपड़े पहनकर जो नए और बगैर धुले होते हैं कुछ समस्याओं को स्वयं निमंत्रण दे देते हैं।
कोई भी वस्त्र जो बुनकर बनाया जाता है। उसके धागों पर बुध अपना अधिपत्य रखता है तथा जब वस्त्र बनकर पूरा हो जाता है तो वो शुक्र की श्रेणी में आ जाता है। शास्त्र अनुसार वस्त्र को तैयार करने के लिए मंगल रूपी कैंची से उसे काटा जाता है। उसे नाप देकर चन्द्र रूपी धागे से सिला जाता है। जब वह पहनने योग्य हो जाता है तो वो शनि का रूप धारण कर लेता है परंतु जो वस्त्र नए तथा बिना धुले हुए अर्थात कोरे हों उन्हें पहनकर हम शनि, मंगल , बुध शुक्र और शनि से संबंधित समस्याओं को अपने ऊपर ले लेते हैं क्योंकि कपड़ों को सिलते समय सुई का इस्तेमाल होता है जो शनि के समान हैं इसी कारण कपड़े जब तक धुलते नहीं हैं वो कीलक की श्रेणी में आ जाते हैं। इसी कारण कपड़ों पर नए बिना धुले कपड़ों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
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