हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक अंतिम संस्कार के समय मृत व्यक्ति की अस्थियों का संचय किया जाता है। इन अस्थियों को पूरे दस दिन सुरक्षित रख ग्यारहवें दिन से इनका श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। आखिर किसी की अस्थियों का संचय क्यों किया जाता है? हड्डियों में ऐसी कौन सी विशेष बात होती है जो शरीर के सारे अंग और हिस्से छोड़कर उनका ही संचय किया जाता है?
वास्तव में अस्थि संय का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक भी। हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी व्यक्ति की सूक्ष्म आत्मा उसी स्थान पर रहती है जहां उस व्यक्ति की मृत्यु हुई। आत्मा पूरे तेरह दिन अपने घर में ही रहती है। उसी की तृप्ति और मुक्ति के लिए तेरह दिन तक श्राद्ध औ भोज आदि कार्यक्रम किए जाते हैं। अस्थियों का संख्य प्रतीकात्मक रूप माना गया है। जो व्यक्ति मरा है उसके दैहिक प्रमाण के तौर पर अस्थियों संचय किया जाता है। अंतिम संस्कार के बाद देह के अंगों में केवल हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं। जो लगभग जल चुके होते हैं। इन्हीं को अस्थियां कहते हैं। इन अस्थियों में ही व्यक्ति की आत्मा का वास भी माना जाता है। जलाने के बाद ही चिता से अस्थियां इसलिए ली जाती हैं क्योंकि मृत शरीर में कई तरह के रोगाणु पैदा हो जाते हैं। जिनसे बीमारियों की आशंका होती है। जलने के बाद शरीर के ये सारे जीवाणु और
रोगाणु खत्म हो जाते हैं और बची हुई हड्डियां भी जीवाणु मुक्त होती हैं। इनको छूने या इन्हें घर लाने से किसी प्रकार की हानि का डर नहीं होता है। इन अस्थियों को श्राद्ध कर्म आदि क्रियाओं बाद किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।
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