ब्राह्मण आठ प्रकार के कहे गये हैं! और यह भी जाने की कितने प्रकार के ब्राह्मण लुप्त हो चुके हैं और कितने प्रकार के शेष गये हैं!
१–मात्र, २–ब्राह्मण, ३–श्रोत्रिय, ४–अनूचान, ५– भ्रूण, ६– ऋषिकल्प, ७–ऋषि और ८-मुनि!
इन के लक्षण इस प्रकार हैं!
जो ब्राह्मणों के कुल में उत्पन्न हुआ हो, किन्तु उनके गुणों से युक्त न हो, आचार और क्रिया से रहित हो, वह “मात्र” कहलाता है!
जो वेदों में पारंगत हो, आचारवान हो, सरल-स्वभाव, शांतप्रकृति, एकांतसेवी, सत्यभाषी और दयालु हो वह ” वह”ब्राह्मण” कहा जाता है!
जो वेदों की एक शाखा छ: अंगों और श्रौत विधियों के सहित अध्ययन करके अध्ययन-अध्यापन,यजन-याजन, दान और प्रतिग्रह —इन छ: कर्मों में रत रहता हो, उस धर्मविद ब्रह्मण को”क्षोत्रिय” कहते हैं!
जो ब्राह्मण वेदों और वेदांगों के तत्त्व को जाननेवाला, शुद्धात्मा, पाप रहित, शोत्रिय के गुणों से संपन्न, श्रेष्ठ और प्राज्ञ हो, उसे “अनूचान” कहा गया है!
जो अनूचान के गुणों से युक्त हो, नियमित रूप से यज्ञ और स्वाध्याय करने वाला, यज्ञ शेष का ही भोग करने वाला और जितेन्द्रिय हो उसे शिष्टजनों ने “भ्रूण” की संज्ञा दी है!
जो समस्त वैदिक और कौकिक ज्ञान प्राप्त करके आश्रम व्यवस्था का पालन करे, नित्य आत्मवशी रहे, उसे ज्ञानीजन”ऋषिकल्प” नामसे स्मरण किया है!
जो ब्राह्मण ऊर्ध्वरेता, अग्रासन का अधिकारी, नियत आहार करनेवाला, संशय रहित, शहप देने और अनुग्रह करने में समर्थ औरसत्य-प्रतिज्ञा हो, उसे “ऋषि” की पदवी दी गयी है!
जो कर्मों से निवृत्त, सम्पूर्ण तत्त्व का ज्ञाता, काम-क्रोध से रहित, ध्यानस्थ, निष्क्रिय और दांत हो, मिटटी और सोने में समभाव रखता हो, उसे “मुनि” के नाम से सम्मानित किया है!
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