शमी शिव जी के साथ-साथ गणेश जी को भी बहुत प्रिय है। शमी वृक्ष में अग्नि तत्त्व होता है। यज्ञ में इसी कारण शमी की लकड़ी का उपयोग होता है। शमी वृक्ष के संदर्भ में कई पौराणिक कथाओं का आधार विद्यमान है। यज्ञ परंपरा में शमी के पत्तों का हवन बहुत शुभ माना जाता है। दशहरे पर शमी की पूजा के विषय में माता पार्वती को भगवान शंकर ने बताया था। साथ ही यह भी बताया कि दशहरे के दिन भले ही शत्रु से युद्ध न भी करो तो भी राजाओं को अपनी सीमा का उल्लंघन अवश्य करना चाहिए। साथ ही सपूंर्ण सेना को पूरी तरह से हथियारों से लैस करके गाजे-बाजे के साथ निकलना चाहिए। लेकिन इस दिन सर्वप्रथम शमी वृक्ष का पूजन पूरे विधि-विधान के साथ यह कहते हुए करना चाहिए कि- हे शमी! आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं। महाभारत के युद्ध में आपने अर्जुन के धनुष को धारण किया। रामचंद्र जी से प्रियवाणी कही।
माता पार्वती ने शमी वृक्ष की महत्ता पर विस्तार से बताने को कहा तो भगवान शिव ने कहा- दुर्योधन ने पांडवों को इस शर्त पर वनवास दिया था कि वे बारह वर्ष प्रकट रूप से वन में घूमें, लेकिन एक वर्ष पूरी तरह से अज्ञातवास में रहें। और अज्ञातवास के दौरान अगर पांडवों का परिचय किसी ने जान लिया तो फिर से उन्हें 12 साल का वनवास भोगना होगा। इस अज्ञातवास के दौरान ही अर्जुन ने शमी वृक्ष पर अपने धनुष और बाण रख थे। राजा विराट के यहां बृहन्नला के रूप में रह रहे अर्जुन दुर्योधन के नेतृत्व में आए कौरवों से गायों की रक्षा के लिए राजा विराट के पुत्र उत्तर के सारथी बने और उस समय शमी वृक्ष से अपने धनुष और बाण उतारे। उत्तर को विश्वास दिलाया कि वह ही अर्जुन है। शमी ने तब तक देवता की तरह अपने खोल में उनके धनुष और बाण की पूरी तरह से रक्षा की। ऐसे ही शमी वृक्ष की पूजा जब भगवान राम ने की तो शमी ने कहा- आपकी विजय होगी। दशहरे के दिन शमी वृक्ष का पूजन राजाओं द्वारा किया जाता है। घर के ईशान कोण में विराजमान शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी माना गया है।
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