ऋषि कर्दम की तीसरी पुत्री श्रद्धा का विवाह ऋषि अंगिरा मुनि के साथ हुआ था ।उन्हि के गर्भ से वृहस्पति का जन्म हुआ है।पुराणों के अनुसार वृहस्पति की स्थिति मंगल से ऊपर दो लाख योजन की दुरी पर है।यदि वृहस्पति वक्र गति से न चले तो एक राशि को एक वर्ष में पार कर लेता है।इनका आकर सभी ग्रहो से बड़ा है।सूर्य से इनकी दुरी 48,32 00000 मील मानी जाती है।पृथ्वी से 36,7000000 दुरी पर है।इनका आधिपत्य जीव ह्रदय कोष, चर्बी तथा कफ पर है।मानव शरीर में कमर से जंघा तक इसका अधिकार क्षेत्र है।यह विवेक बुद्धि ज्ञान पारलौकिक सुख स्वास्थ्य आध्यात्मिकता उदारता धर्म न्याय सिद्धांतवादिता उच्चाभिलाषी शान्त स्वभाव राजनीतिज्ञता पुरोहितत्व मंत्रित्व यश सम्मान पति का कल्याण पवित्र व्यवहार आदि के अतिरिक्त धन संतान तथा बड़े भाई का भी प्रतिनिधित्व है।यह कफ तथा चर्बी की वृद्धि करता है।हृदय कोष सम्बन्धि रोग ,क्षय ,मुरक्षा ,गुल्म,शोध, का इसी से संबंद्ध माना गया है।गुरु के अशुभ स्थिति में होने पे इन रोगों की उत्पत्ति होती है।यह अपने दशा में कफ तथा चर्बी पर विशेष प्रभाव डालता है।
प्रिय वस्तु।गुरु को स्वर्ण कांस्य चना गेहूं जौ तथा पीले रंग के पुष्प ,वस्त्र,फल,हल्दी,धनियां ,प्याज, उन तथा आदि का प्रतिनिधित्व करता है।इनकी स्वराशि धनु तथा मीन है।यह कर्क राशि के 5 अंश तक परम् उच्चस्थ ,मकर राशि में 5 अंश तक नीच तथा धनु राशि के 10 अंश तक मूल त्रिकोड माना जाता है।सूर्य चंद्र तथा मंगल ये तीनो इनके नैसर्गिक मित्र है।बुद्ध तथा शुक्र शत्रु हैं।शनि राहु केतु से यह सम भाव रखता है।गुरु अपने स्थान से 5 7 9 घर को पूर्ण दृस्टि से देखता है।विद्या संतान धर्म लाभ यश कीर्ति राज सम्मान पवित्रता इन्द्रिय निग्रह होता है।अगर गुरु कारक हो तो पुखराज सोने या ताम्बे में दाहिने हाथ की तर्जनी में गुरुवार को गुरु की होरा में धारण करे।
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