मुख्य द्वार से प्रकाश व वायु को रोकने वाली किसी भी प्रतिरोध को द्वारवेध कहा जाता है अर्थात् मुख्य द्वार के सामने बिजली, टेलिफोन का खम्भा, वृक्ष, पानी की टंकी,मंदिर, कुआँ आदि को द्वारवेध कहते हैं। भवन की ऊँचाई से दो गुनी या अधिक दूरी पर होने वाले प्रतिरोध द्वारवेध नहीं होते हैं। द्वारवेध निम्न भागों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं-
*कूपवेधः मुख्य द्वार के सामने आने वाली भूमिगत पानी की टंकी, बोर, कुआँ,शौचकूप आदि कूपवेध होते हैं और धन हानि का कारण बनते हैं।
*स्तंभ वेधः मुख्य द्वार के सामने टेलिफोन, बिजली का खम्भा, डी.पी. आदि होने से रहवासियों के मध्य विचारों में भिन्नता व मतभेद रहता है, जो उनके विकास में बाधक बनता है।
*स्वरवेधः द्वार के खुलने बंद होने में आने वाली चरमराती ध्वनि स्वरवेध कहलाती है जिसके कारण आकस्मिक अप्रिय घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है। चूल मजागरा (Hinges) में तेल डालने से यह ठीक हो जाता है।
*ब्रह्मवेधः मुख्य द्वार के सामने कोई तेलघानी, चक्की, धार तेज करने की मशीन आदि लगी हो तो ब्रह्मवेध कहलाती है, इसके कारण जीवन अस्थिर व रहवासियों में मनमुटाव रहता है।
*कीलवेधः मुख्य द्वार के सामने गाय, भैंस, कुत्ते आदि को बाँधने के लिए खूँटे को कीलवेध कहते हैं, यह रहवासियों के विकास में बाधक बनता है।
*वास्तुवेधः द्वार के सामने बना गोदाम, स्टोर रूम, गैराज, आऊटहाऊस आदि वास्तुवेध कहलाता है जिसके कारण सम्पत्ति का नुकसान हो सकता है।
मुख्य द्वार भूखण्ड की लम्बाई या चौड़ाई के एकदम मध्य में नहीं होना चाहिए,वरन किसी भी मंगलकारी स्थिती की तरफ थोड़ा ज्यादा होना चाहिए।
मुख्य द्वार के समक्ष कीचड़, पत्थर ईंट आदि का ढेर रहवासियों के विकास में बाधक बनता है।
मुख्य द्वार के सामने लीकेज आदि से एकत्रित पानी रहने वाले बच्चों के लिए नुकसानदायक होता है।
मुख्य द्वार के सामने कोई अन्य निर्माण का कोना अथवा दूसरे दरवाजे का हिस्सा नहीं होना चाहिए।
मुख्य द्वार के ठीक सामने दूसरा उससे बड़ा मुख्य द्वार जिसमें पहला मुख्य द्वार पूरा अंदर आ जाता हो तो छोटे
मुख्य द्वार वाले भवन की धनात्मक ऊर्जा बड़े मुख्य द्वार के भवन में समाहित हो जाती है और छोटे मुख्य द्वारवाला भवन वहाँ के निवासियों के लिए अमंगलकारी रहता है।
मुख्यद्वार के पूर्व, उत्तर या ईशान में कोई भट्टी आदि नहीं होना चाहिए और दक्षिण,पश्चिम, आग्नेय अथवा नैऋत्य में पानी की टंकी, खड्डा कुआँ आदि हानिकारक है। यह मार्गवेध कहलाती है और परिवार के मुखिया के समक्ष रूकावटें पैदा होने का कारक है।
*भवन वेधः मकान से ऊँची चारदीवारी होना भवन वेध कहलाता है। जेलों के अतिरिक्त यह अक्सर नहीं होता है। यह आर्थिक विकास में बाधक है।
दो मकानों का संयुक्त प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए। वह एक मकान के लिए अमंगलकारी बन जाता है।
मुख्यद्वार के सामने कोई पुराना खंडहर आदि उस मकान में रहने वालों के दैनिक हानि और व्यापार-धंधे बंद होने का सूचक है।
*छाया-वेधः किसी वृक्ष, मंदिर, ध्वजा, पहाड़ी आदि की छाया प्रातः 10 से सायं 3 बजे के मध्य मकान पर पड़ने को छाया वेध कहते हैं। यह निम्न 5 तरह की हो सकती है।
*मंदिर छाया वेधः भवन पर पड़ रही मंदिर की छाया शांति की प्रतिरोधक व व्यापार व विकास पर प्रतिकूल प्रभाव रखती है। बच्चों के विवाह में देर व वंशवृद्धि पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
*ध्वज छाया वेधः ध्वज, स्तूप, समाधि या खम्भे की छाया के कारण रहवासियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
*वृक्ष छायावेधः भवन पर पड़ने वाली वृक्ष की छाया रहवासियों के विकास में बाधक बनती है।
*पर्वत छायावेधः मकान के पूर्व में पड़ने वाली पर्वत की छाया रहवासियों के जीवन में प्रतिकूलता के साथ शोहरत में भी नुकसानदायक होती है।
*भवन कूप छायावेधः मकान के कुएँ या बोरिंग पर पड़ रही भवन की छाया धन-हानि की द्योतक है।
द्वारवेध के ज्यादातर प्रतिरोध जिस द्वार में वेध आ रहा है उसमें श्री पर्णी∕सेवण की लकड़ी की एक कील जैसी बनाकर लगाने से ठीक होते पाये गये हैं।
Dr. Pooja Sharma
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