१) सदाचार से दीर्घ आयु, श्री और कीर्ति प्राप्त होती है |
२) नास्तिकता, आलस्य, गुरू की आज्ञा और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करना ये बातें आयु का नाश करती हैं |
३) शील और मर्यादा को छोड़ना और व्याभिचार करना ये दो बातें आयु का नाश करती हैं |
४) क्रोध न करना, सत्य का पालन करना, हिंसा न करना, असूया ( चुगली ) न करना, कुटिल्ता न करना, इससे १०० वर्ष की आयु प्राप्त होती है |
५) नाखून खाना, उच्छिष्ट भक्षण करना इनसे आयु का नाश होता है |
६) ब्रह्ममुहूर्त में उठकर धर्म का विचार करना और दोनो संधिकाल में संध्या करना , इससे भी दीर्घायु प्रप्त होती है |
७) व्याभिचार न करना , क्योंकि व्याभिचार से आयुष्य का नाश होता है |
८) माता पिता और आचार्य को नमस्कार करना |
९) ग्राम के पास शौच न करना |
१०) जूता, वस्त्र, पात्रदूसरे का वर्ता हुआ धारण न करना । अपने एक पाँव से दूसरा पाँव न घसीटना, नित्य ब्रह्मचर्य से रहना |
११) आक्रोश, झगड़ा न करना ।
१२) किसी को मर्मवेदी वाक्य न बोलना | निन्दा न करना , हीन से किसी पदार्थ को स्विकार न करना |
१३) पाँव गीले रख कर भोजन करना |
१४) केशों को न खींचना, सिर पर प्रहार न करना । दोनो हाथों से सिर न खुजलाना |
१५) दुर्गन्ध वायु में न ठहरना |
१६) छुट्टी के दिन पढ़ना नहीं |
१७) सोने के समय दूसरा वस्त्र पहनना |
१८) कभी कभी उपवास करना |
१९) एक पात्र में दूसरे के साथ भोजन न करना |
२०) रजस्वाला स्त्री का बनाया हुआ भोजन न करना |
२१) निषिद्ध अन्न का सेवन न करना |
२२) दिन में दो बार ही भोजन करना और बीच में कुछ न खाना |
२३) जिस अन्न में केश हों उसको न खाना |
२४) संध्याकाल में न सोना, न पढ़ना और न खाना |
२५) सदा प्रयत्न करते रहना क्योंकि प्रयत्नशील मनुष्य को ही सुख प्राप्त होता है |
२६) ऐसी अपनी शक्ति बढ़ानी कि जिससे शत्रुओं का हमला न हो सके तथा अपने नौकर और स्वजन अपना अनादर न कर सकें |
२७) सदा ही श्रेष्ठ पुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ना |
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