अध्यात्म

भाव के भूखे प्रभु, गोपियों का अपने हाथ से श्रृंगार किया

Written by Bhakti Pravah

भगवान ने गोपियों का अपने हाथ से श्रृंगार किया । अत: गोपियों को भी अभिमान हो गया कि कृष्ण ने हमारी सुंदरता के कारण हमें स्वीकार किया क्योंकि हम बहुत सुंदर हैं । भगवान अभिमान तो किसी का नहीं रहने देते, गोपियां तो उनकी प्रेयसी हैं । भगवान ने यदि हमें कभी स्वीकार किया तो यह समझना चाहिए कि यह हमारी योग्यता नहीं, उनकी करूणा है । अत: वह गोपियों को उसी अवस्था में छोड़कर अंतर्धान हो गए । विरह ही अभिमान को निवृत्त करता है ।

गोपियां भगवान के वियोग में बहुत व्याकुल हो गईं और पश्चाताप करने लगीं । गोपियों ने ‘तुलसी’ से पूछा कि तुम तो गोविंद की ‘चरणप्रिया’ हो, क्या तुमने हमारे कान्हा को कहीं देखा है ? पीपल वृक्ष से पूछा कि सभी वृक्षों में से पीपल का वृक्ष भगवान का रूप है । अत: तुमने हमारे कृष्ण को देखा है ? प्रेम की उत्कृष्टता में जड़ और चेतन का भेद खत्म हो जाता है अर्थात जड़ में भी चैतन्य दिखाई देता है । गोपियां तो कृष्णमयी थीं, उन्हें तो कण- कण में भगवान दिखाई देते थे ।

गोपियों ने रेत में चार – चरण चिन्ह देखे और वे उन्हीं चरण – चिन्हों का पीछा करते हुए सोचने लगीं कि ये चार चरण चिन्ह हैं । अत: कृष्ण राधा को साथ लेकर गए होंगे । विरह करती गोपियां चरणों का पीछा करते हुए आगे पहुंची तो देखा कि अब दो ही चरण – चिन्ह हैं और राधा भी कृष्ण – विरह में व्याकुल हो रही है । राधा ने बताया कि यहां आकर ठाकुर ने राधा के पसीने को पोंछा तो राधा ने कहा कि मैं थक गई, अब मैं नहीं चल सकती । मुझे अपने कंधे पर बिठा लो । जैसे ही मैंने कंधे पर बैठने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो कृष्ण अंतर्धान हो गए । गोपियों ने देखा कि राधा दोनों हाथ आगे करके कृष्ण – विरह में व्याकुल हो उठी ।

गोपियों का रुदन सुनकर भगवान तुरंत हाथ में पीताम्बर लेकर उपस्थित हो गए । भगवान का प्यार ही आंसुओं का उपहार है । रुदन में बहुत बल है यदि भगवान के लिए दो बूंद अश्रु गिर जाएं तो वे अश्रु ही आश्रय बन जाते हैं । गोपियों के शरीर में तो प्राण आ गए । भगवान ने गोपियों से कहा कि यदि मुझे ब्रह्मा की आयु भी मिले, तो मैं तुम्हारे ऋण से उऋण नहीं हो सकता । हमें भी गोपियों जैसा प्रभु से उत्कृष्ट प्रेम करना चाहिए । भगवान को भजना चाहिए । संससार में कुछ लोग तो स्वार्थ के लिए भजन करते हैं, कुछ व्यवहार के लिए करते हैं । भगवान का भजन भगवान के लिए ही होना चाहिए ।