अध्यात्म

भाग्य पर नहीं, खुद पर करें भरोसा

Written by Bhakti Pravah

कर्म का मतलब कई लोगों के लिए “काम” हो सकता है, लेकिन प्रेरित कर्म काम जैसा बिलकुल महसूस नहीं होगा। प्रेरित कर्म और काम के बीच फर्क यह है कि प्रेरित कर्म वह है, जब आप पाने के लिए काम कर रहे हैं । अगर आप उस चीज को साकार करवाने के लिए काम कर रहे हैं, तो आप पीछे फिसल गए हैं । प्रेरित कर्म प्रयासरहित होता है और इससे अद्भूत महसूस होता है, क्योंकि आप पाने की राह पर होते हैं ।

कल्पना करें कि जिंदगी तेजी से बहती नदी है । किसी चीज को साकार करवाने के लिएकाम करते समय ऐसा महसूस होगा, जैसे आप नदी के बहाव के खिलाफ तैर रहे हैं । यह मुश्किल होगा और संघर्ष जैसा लगेगा । दूसरी तरफ, ब्रह्मांड से पाने के लिए कर्म करते समय आपको ऐसा महसूस होगा, जैसे आप नदी के बहाव के साथ बह रहे हैं । यह प्रयासरहित महसूस होगा । यह प्रेरित कर्म है और ब्रह्मांड तथा जिंदगी के बहाव के साथ तैरने की भावना है ।

कई बार तो किसी चीज को पाने तक आपको पता भी नहीं चलेगा कि आपने “कर्म” किया था, क्योंकि कर्म करते समय आपको बहुत अच्छा महसूस हो रहा था । तब आप पलटकर देखेंगे और इस बात पर हैरान होंगे कि किस तरह ब्रह्मांड आपको वहां तक ले गया, जहां आप जाना चाहते थे, और उस चीज को आपके पास ले आया, जिसे आप पाना चाहते थे ।