अध्यात्म

जानिये भगवान शिव के दिव्य स्वरूप के बारे में

Written by Bhakti Pravah

भगवान शिव अपने कर्मों से तो अद्भुत हैं ही अपने स्वरूप से भी रहस्यमय है । चाहे उनके बाल में चंद्रमा हो, गले में सांपों की माला हो या उनके शरीर में मृग छाल के वस्त्र हो, हर वस्तु जो भगवान शिव ने धारण किया है उनके पीछे बड़ा रहस्य है । उनके बाल में ‘चंद्रमा’ मन का प्रतीक है । शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र, सशक्त है उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है । शिव का चंद्रमा सदा उज्जवल है । ‘सर्प’ जैसा क्रूर व हिंसक जीव महाकाल के अधीन है । सर्प तमोगणी है व संहारक प्रवृत्ति का जीव है, जिसे शिव ने अपने अधीन कर रखा है इसलिए उनके गले में सर्पों का हार है । शिव के हाथ में एक मारक ‘त्रिशूल’ शस्त्र है । त्रिशूल सृष्टि में मानव, भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है । डम – डम करता ‘डमरू’ जिसे शिव तांडव करते समय बजाते है उसका नाद ही ब्रद्म रूप है । शिव के गले में ‘मुंडमाला’ है जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को अपने वश में कर रखा है । उनके शरीर में व्याघ्र ‘चर्म’ है, व्याघ्र हिंसा व अधिकार का प्रतीक माना जाता है । इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा व अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है । शिव का ‘तीसरा नेत्र’ सत्व,रज,तम जैसे तीन गुणों, भूत, वर्तमान, भविष्य जैसे तीनों कालों और स्वर्ग, धरती और पाताल का प्रतीक है । शिव के वाहन वृषभ की बात करें तो वृषभ का अर्थ है चार पैर वाला बैल जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के अधीन है । सार रूप में शिव का स्वरूप विराट और अनंत है ।

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