अंतर्दशा में बनने वाले अनिष्टकारक योग की निवृत्ति के लिए(शांति हेतु) शिवार्चन और रुद्राभिषेक का परामर्श दिया गया है. भृगुसंहितामें भी जन्मपत्रिका का फलादेश करते समय महर्षि भृगु अधिकांश जन्मकुंडलियों में जन्म-जन्मांतरों के पापों और ग्रहों की पीडा के समूल नाश एवं नवीन प्रारब्ध के निर्माण हेतु महादेव शंकर की आराधना तथा रुद्राभिषेक करने का ही निर्देश देते हैं. किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है.
प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा (1), अष्टमी (8), अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया (2) व नवमी (9) के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथि में रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है… कृष्णपक्ष की चतुर्थी (4), एकादशी (11) तथा शुक्लपक्ष की पंचमी (5) व द्वादशी (12) तिथियों में भगवान शंकर कैलास पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार में आनंद-मंगल होता है. कृष्णपक्ष की पंचमी (5), द्वादशी (12) तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी (6) व त्रयोदशी (13) तिथियों में भोलेनाथ नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते हैं… अत:इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है…
कृष्णपक्ष की सप्तमी (7), चतुर्दशी (14) तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा (1), अष्टमी (8), पूíणमा (15) में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूíत के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर उनकी साधना भंग होगी. इससे यजमान पर महाविपत्ति आ सकती है. कृष्णपक्ष की द्वितीया (2), नवमी (9) तथा शुक्लपक्ष की तृतीया (3) व दशमी (10) में महादेवजी देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं. इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप (दुख) मिलेगा. कृष्णपक्ष की तृतीया (3), दशमी (10) तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी (4) व एकादशी (11) में नटराज क्रीडारत रहते हैं.इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट दे सकता है. कृष्णपक्ष की षष्ठी (6), त्रयोदशी (13) तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी (7) व चतुर्दशी (14) में रुद्रदेव भोजन करते हैं. इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा दे सकता है.
यह ध्यान रहे कि शिव-वास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरूरी है. निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है. ज्योतिर्लिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, सावन के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है. वस्तुत:शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और तब उसकी सारी समस्याएं स्वत:समाप्त हो जाती हैं. दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से सारे पाप-ताप-शाप धुल
जाते हैं.
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