ज्योतिष

बारवां भाव और शुक्र

Written by Bhakti Pravah

मित्रों बारवें भाव में शुक्र के अधिकतर शुभफल ही विद्वानों ने बताये हैजिसका एक मुख्य कारण ये है की ये भाव भोग विलास शैया सुख का माना गया है और खुद शुक्र इन सब चीजों का कारक होता है| ऐसे में शुक्र इन सब में विरधी करता है| जैसा की आपको पता है की आज लगभग हरइंसान ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जीना जाता है और भोग के सभी साधन भोगना चाहता है ऐसे में जिस इंसान की कुंडली में शुक्र इस भाव में होवो जातक को सभी प्रकार केसुख भोगने सिथ्ती प्रदान करता है|

शुक्र को लाल किताब में कामधेनु गाय कहा गया है और ऐसा माना जाता है की कामधेनु गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी नदी पार की जा सकती है| चूँकि शुक्र को पत्नी का दर्जा भी दिया गया है ऐसे में जातक की पत्नी उसके भाग्य की स्वामिनी होती है| वो उसकी हर मुशीबत को अपने उपर झेलने वाली होती है औरर उसके भाग्य में विरधी करने वाली होती है ऐसे में जातक की शादी के बाद उसके भाग्य विरधी के योग प्रबल होजाते है|

चूँकि शुक्र को वासना का कारक माना गया है ऐसे में जातक अपनी उम्र के 28वें साल तक भोग विलास में रह सकता है और दूसरी स्त्रियों से सुख प्राप्त करता है लेकिन जैसे जैसे उसकी उम्र में विरधी होती है उसकी रूचि इसमें घटनी सुरु हो जाती है और जब जातक 59 साल का होता है तो उसकी रूचि पूर्ण रूप सेरूहानी हो जाती है| ऐसे मेंयदि शुक्र पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव न हो तो जातक आध्यात्मिक रूप से भी सफल हो जाता हैऔर उसका मन परमात्मा की भक्ति में लग जाता है| यानी यहाँ का शुक्र सब कुछ भोगकर भक्ति मेंलीन हो जाने का योग भी निर्मित करता है|

यहाँ का शुक्र जातक को ऐसा निवास प्रदान करता है जो सजा संवरा हुआ हो| उसमे हर तरफ सोंदर्य की वस्तु हो| इसिलिय इस भाव के शुक्र वाले जातक को हमेशा अपना घर साफ़ सुधरा और संवार कर रखने की सलाह दी जाती है ताकि शुक्र के शुभ फल जातक को मिलतेरहे|

यहाँ के शुक्र का एक मुख्य दोष ये है की जातक की पत्नी को कोई न कोई स्वास्थ्य की दिक्कत का सामना अवस्य करते रहना पड़ता है जिसका कारण ये हैकी जातक की मुसीबतों को वो खुद अपने उपर झेलती है| ऐसे में पत्नी के बराबर वजन का हराचारा गौशाला में दान करने से काफी राहत मिलती है|
शुक्र चन्द्र का योग शुभ फल नही देता क्योंकि चन्द्र को इस भाव में ख़ुशी के उपर काले पर्दे की संज्ञा दी गई है| जातक अपने जीवन का सम्पूर्ण आनंद नही ले पाता है| जातक अवैध सम्बन्ध भी बना लेता है जिसका भी दुस्प्रभाव जातक पर पड़ता है|

शुक्र मंगल का योग जातक को अत्याधिक कामी बना देता है और अवैध सम्बन्धों की तरफ धकेलता है|

गुरु शुक्र के योग होने पर जातक गुप्त सम्बन्ध बनाता अवस्य है लेकिन वोकिसी के सामने नही आते जिस कजेकारण जातक की बदनामी नही होती| हालंकि इन दोनों का योग बाद में जातक को अध्यात्मिक रूप से सफलता प्रदान करने में सहायता करता है|

शुक्र बुध का योग शुभ फल देता है लेकिन बुद्ध इस भाव में शुभ फल नही देता जिसके कारण इनके शुभ फलों में कुछ कमी अवस्य हो जाती है|
शुक्रशनी का इस भाव में योग जातक की उस से बड़ी उम्र की औरत के साथ सम्बन्ध बनाने का योगबनाता है साथ ही जातक की बदनामी होने के योग भी बन जाते है इसे सम्बन्धों के कारण|

शुक्र राहू का योग शुभ फल नही देता | राहू शुक्र के शुभ फलों मके कमी करदेता है| राहू का धुवां शुक्र कीसुन्दरता पर धुन्वें की काली धारी फेरने के समान कार्य करता है| ऐसे में जातक की पत्नी का स्वास्थ्य भी सही नही रह पाता|

शुक्र के साथ सूर्य का योग शुभ फल नही देता
| सूर्य कीआग शुक्र की सुन्द्त=रता को जलाने का कार्य करती है|
शुक्र के साथ केतु होने पर भी शुक्र के शुभ फल में कमी हो जाती है|

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