अध्यात्म

प्रणाम करना एक सम्मान है, एक संस्कार है

नमस्कार या प्रणाम करना एक सम्मान है, एक संस्कार है। प्रणाम करना एक यौगिक प्रक्रिया भी है। बड़ों को हाथ जोड़कर प्रणाम करने का वैज्ञानिक महत्व भी है। नमस्कार मन, वचन और शरीर तीनों में से किसी एक के माध्यम से किया जाता है।

‘नम:’ धातु से बना है ‘नमस्कार’।

नम: का अर्थ है नमन करना या झुकना। नमस्कार का मतलब पैर छूना नहीं होता। नमस्कार शब्द हिन्दी, गुजराती, मराठी, तमिल, बंगाली आदि वर्तमान में प्रचलित भाषाओं का शब्द नहीं है। यह हिन्दू धर्म की भाषा संस्कृत का शब्द है। संस्कृत से ही सभी भाषाओं का जन्म हुआ।

हिन्दू और भारतीय संस्कृति के अनुसार मंदिर में दर्शन करते समय या किसी सम्माननीय व्यक्ति से मिलने पर हमारे हाथ स्वत: ही नमस्कार मुद्रा में जुड़ जाते हैं। नमस्कार करते समय व्यक्ति क्या करें और क्या न करें इसके भी शास्त्रों में नियम हैं। नियम से ही समाज चलता है।
लाभ

हमारे हाथ के तंतु मस्तिष्क के तंतुओं से जुड़े हैं। नमस्कार करते वक्त हथेलियों को दबाने से या जोड़े रखने से हृदयचक्र और आज्ञाचक्र में सक्रियता आती है जिससे जागरण बढ़ता है। उक्त जागरण से मन शांत और चित्त में प्रसन्नता आती है। साथ ही हृदय में पुष्टता आती है तथा निर्भिकता बढ़ती है।

अच्छी भावना और तरीके से किए गए नमस्कार का प्रथम लाभ यह है कि इससे मन में निर्मलता बढ़ती है। निर्मलता से सकारात्मकता का विकास होता है। अच्छे से नमस्कार करने से दूसरे के मन में आपके प्रति अच्छे भावों का विकास होता है।

इस तरह नस्कार का आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों ही तरह का लाभ मिलता है। इससे जहां दूसरों के प्रति मन में नम्रता बढ़ती है वहीं मंदिर में नमस्कार करने से व्यक्ति के भीतर शरणागत और कृतज्ञता के भाव का विकास होता है। इससे मन और मस्तिष्क शांत होता है और शीघ्र ही आध्यात्मिक सफलता मिलती है।
मनोवैज्ञानिक असर

भारत में हाथ जोड़कर नमस्कार करना एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है। हाथ जोड़कर आप जोर से बोल नहीं सकते, अधिक क्रोध नहीं कर सकते और भाग नहीं सकते। यह एक ऐसी पद्धति है जिसमें एक मनोवैज्ञानिक दबाव होता है। इस प्रकार प्रणाम करने से सामने वाला व्यक्ति अपने आप ही विनम्र हो जाता है।
आध्यात्मिक रहस्य

दाहिना हाथ आचार अर्थात धर्म और बायां हाथ विचार अर्थात दर्शन का होता है। नमस्कार करते समय दायां हाथ बाएं हाथ से जुड़ता है। शरीर में दाईं ओर झड़ा और बांईं ओर पिंगला नाड़ी होती है। ऐसे में नमस्कार करते समय झड़ा, पिंगला के पास पहुंचती है और सिर श्रृद्धा से झुका हुआ होता है।

हाथ जोड़ने से शरीर के रक्त संचार में प्रवाह आता है। मनुष्य के आधे शरीर में सकारात्मक आयन और आधे में नकारात्मक आयन होते हैं। हाथ जोड़ने पर दोनों आयनों के मिलने से ऊर्जा का प्रवाह होता है। जिससे शरीर में सकारात्मकता का समावेश होता है। किसी को प्रणाम करने के बाद आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और उसका आध्यात्मिक विकास होता है।

नमस्कार के मुख्यत: तीन प्रकार हैं:-

सामान्य नमस्कार,
पद नमस्कार
साष्टांग नमस्कार।

सामान्य नमस्कार :

किसी से मिलते वक्त सामान्य तौर पर दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर नमस्कार किया जाता है। प्रतिदिन हमसे कोई न कोई मिलता ही है, जो हमें नमस्कार करता है या हम उसे नमस्कार करते हैं।

कभी भी एक हाथ से नमस्कार न करें और न ही गर्दन हिलाकर नमस्कार करें। दोनों हाथों को जोड़कर ही नमस्कार करें। इससे सामने वाले के मन में आपके प्रति अच्छी भावना का विकास होगा और आप में भी। इसे मात्र औपचारिक अभिवादन न समझें।
नमस्कार करते समय मात्र 2 सेकंड के लिए नेत्रों को बंद कर देना चाहिए। इससे आंखें और मन रिफ्रेश हो जाएंगे।
नमस्कार करते समय हाथों में कोई वस्तु नहीं होनी चाहिए।

पद नमस्कार :

इस नमस्कार के अंतर्गत हम अपने परिवार और कुटुम्ब के बुजुर्गों, माता-पिता आदि के पैर छूकर नमस्कार करते हैं। परिवार के अलावा हम अपने गुरु और आध्यात्मिक ज्ञान से संपन्न व्यक्ति के पैर छूते हैं।

ऐसे किसी व्यक्ति के पैर नहीं छूना चाहिए जिसे आप अच्छी तरह जानते नहीं हों या जो आध्यात्मिक संपन्न व्यक्ति नहीं है। बहुत से लोग आजकल चापलूसी या पद-लालसा के चलते राजनीतिज्ञों के पैर छूते रहते हैं, जो कि गलत है।

साष्टांग नमस्कार :

इसे दंडवत प्रणाम भी कहते हैं। यह नमस्कार सिर्फ मंदिर में ही किया जाता है। षड्रिपु, मन और बुद्धि, इन आठों अंगों से ईश्वर की शरण में जाना अर्थात साष्टांग नमन करना ही साष्टांग नमस्कार है।
मंदिर में नमस्कार करते समय या साष्टांग नमस्कार करते वक्त पैरों में चप्पल या जूते न हों।
मंदिर में नमस्कार करते समय पुरुष सिर न ढंकें और स्त्रियों को सिर ढंकना चाहिए। हनुमान मंदिर और कालिका के मंदिर में सभी को सिर ढंकना चाहिए।
हाथों को जोड़ते समय अंगुलियां ढीली रखें। अंगुलियों के बीच अंतर न रखें। हाथों की अंगुलियों को अंगूठे से दूर रखें। हथेलियों को एक-दूसरे से न सटाएं, उनके बीच रिक्त स्थान छोड़ें।
मंदिर में देवता को नमन करते समय सर्वप्रथम दोनों हथेलियों को छाती के समक्ष एक-दूसरे से जोड़ें। हाथ जोड़ने के उपरांत पीठ को आगे की ओर थोड़ा झुकाएं।
फिर सिर को कुछ झुकाकर भ्रूमध्य (भौहों के मध्यभाग) को दोनों हाथों के अंगूठों से स्पर्श कर, मन को देवता के चरणों में एकाग्र करने का प्रयास करें।
इसके बाद हाथ सीधे नीचे न लाकर, नम्रतापूर्वक छाती के मध्यभाग को कलाइयों से कुछ क्षण स्पर्श कर, फिर हाथ नीचे लाएं।

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