धन्य हैं वे महाभारत के प्रणेता महर्षि व्यास, जिन्होंने कहा है : ‘कलियुग में दान ही एकमात्र धर्म है।’ तप और कठिन योगों की साधना इस युग में नहीं होती। इस युग में दान देने तथा दूसरों की सहायता करने की विशेष जरूरत है।
दान शब्द का क्या अर्थ? सब दानों से श्रेष्ठ है धर्म-दान, फिर है विद्यादान, फिर प्राणदान और सबसे अन्तिम है अन्न-जल-दान।
जो आध्यात्मिक ज्ञान का दान करते हैं वे आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। जो लौकिक विद्यादान करते हैं वे मनुष्य की आंखें खोलते हैं, उन्हें अध्यात्म ज्ञान का पथ दिखा देते हैं। अन्य दान, यहां तक कि प्राणदान भी इनके निकट गौण है। अतएव, तुम्हें समझ लेना चाहिए कि अन्यान्य सब कर्म आध्यात्मिक ज्ञानदान से निम्नतर है।
जो मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान देता है वही वस्तुत: मानव का सबसे बड़ा उपकारक है और इसीलिए हम सदैव पाते हैं कि जिन्होंने मनुष्य को उसकी आध्यात्मिक साधना में सहायता दी, वे ही मनुष्यों में सर्वाधिक प्रभावशाली माने गए; क्योंकि आध्यात्मिकता ही हमारे जीवन के समस्त क्रियाकलापों की सच्ची आधारशिला है। आध्यात्मिकता स्वस्थ एवं शक्तिशाली व्यक्ति में अन्य सब दृष्टियों से भी शक्तिमान बनने की क्षमता रहती है। जब तक मनुष्य में आध्यात्मिक शक्ति नहीं है, तब तक उसकी भौतिक आवश्यकताएं भी भली प्रकार पूरी नहीं हो सकतीं।
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