अध्यात्म

टेलीपैथी [विचार सम्प्रेषण ]

Written by Bhakti Pravah

प्रकृति ने प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक ऐसी शक्ति प्रदान की है की उसके द्वारा वह कोई भी विलक्षण कृत्य कर सकता है |यह शक्ति जाने-अनजाने सभी को प्रभावित करती है और अपने अस्तित्व का बोध कराती रहती है |किसी अनजाने शहर में पहुच कर हम भयभीत होते हैं की क्या होगा ?ऐसे क्षणों में हम किसी घनिष्ठ मित्र को याद करते हैं अथवा यह उम्मीद करते हैं की कोई हमारा अति घनिष्ठ मिल पायेगा ,जिसकी वहां उपस्थिति की कोई संभावना नहीं होती ,हमें आश्चर्य तो तब होता है की जब उस अनजान शहर में हमारा वह मित्र हमें नजर आ जाता है और हमारी अपेक्षित सहायता करता है |इसे टेलीपैथी का एक जीवित उदाहरण समझा जा सकता है |ऐसा इसलिए होता की हमारे अवचेतन से निकली तरंगे हमें उस मित्र के पास होने का आभास कराती हैं और हमें उसकी याद आती है ,जिसके बारे में बाह्य ज्ञानेन्द्रियाँ सोच तक नहीं सकती ,मष्तिष्क की सोच से निकली तरंगे उस मित्र तक भी पहुचती हैं |

इंसान हर समय हर जगह उपस्थित नहीं हो सकता ,इसीकारण उसे हमेशा से ऐसी तकंक की आवश्यकता रही है जो दूरियों के बावजूद उसके कामो को न रुकने दे |इसी खोज का आधुनिक उदाहरण टेलीफोन है ,अथवा रेडियो -टेलीविजन ,कम्प्यूटर है |पुराने ऋषियों -महर्षियों ने इसके लिए मनुष्य की आतंरिक क्षमता को माध्यम बनाया था जो आधुनिक विज्ञान से भी बहुत आगे है |ऐसा विश्व के हर कोने में हुआ ,क्योकि प्रत्येक व्यक्ति में खुद ही असीमित क्षमता होती है |प्राचीन ज्ञानियों ने इन असीमित शक्तियों को खोजा और उसका उपयोग किया |तेली पैठी ऐसी ही एक मानसिक तकनीक है जो दूरियों के बावजूद हमारी बातों को इच्छित व्यक्ति तक पहुचा देती है |मोबाइल अथवा फोन का टावर भले न मिले पर अगर व्यक्ति ने अपनी क्षमता विकसित कर ली तो वह कहीं भी किसी को भी अपनी अमान्सिक तरंगे और सन्देश भेज सकता है |टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस तबादले को कहते हैं जिसमे हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियों का इस्तेमाल नहीं होता ,यानी इसमें देखने ,सुनने ,सूंघने ,छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं होता है |अर्थात मुंह से कुछ बोला नहीं और सन्देश पहुँच गया |आँख से कुछ देखा नहीं और कहीं का समाचार जान लिया | टेलीपैथी यानी दूर रहकर भी हर बात जान लेना ,हर बात कह देना |

टेलीपैथी को आज एक महत्वपूर्ण एवं सुविख्यात विधा के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है | टेलीपैथी का मतलब है दूर रहकर आपसी सूचनाओं का बगैर किसी भौतिक साधनों के आदान-प्रदान | टेलीपैथी यानि विचार संप्रेषण के द्वारा आज कई कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है। टेलीपैथी आज एक वैज्ञानिक सत्य के रूप में स्थापित हो चूका है |साधना रहस्य का यह आयाम मनुष्य की आतंरिक शक्ति से सम्बंधित है |इसके निरंतर अभ्यास से मनुष्य बिना किसी वैज्ञानिक उपकरण या साधन के अपने विचारों और भावों को दूसरों तक संप्रेषित कर सकता है ,साथ ही किसी के भी अन्तःस्थल में पैठकर वह उसके गुप्त भावों को भी जन सकता है |वस्तुतः टेलीपैथी पूर्वाभास का ही एक रूप है |

टेलीपैथी के दो केन्द्र होते हैं | एक केन्द्र प्रसारण करता है अर्थात सूचनाएं भेजता है ,और दूसरा रिसीवर की भूमिका निभाता है अर्थात सूचनाएं प्राप्त करता है | हजारों मील दूर बैठे किसी व्यक्ति तक कोई संदेश बिना किसी उपकरण के मानसिक शक्ति के द्वारा ही पंहुचाया जा सकता है | इंसानों को तो इस विद्या को सीखना पड़ता है किन्तु प्रकृति के सच्चे सहचर सामान्य जीव- जन्तुओं में टेलीपैथी की विद्या जन्मजात पाई जाती है | ऐसा ही एक प्राणी है कछुआ , जिसे इस विद्या में महारत हासिल है। मादा कछुआ समुद्र के किनारे अण्डे देकर दूर यात्रा पर चली जाती है। वह हजारों मील दूर से अपने अण्डों से लगातार सम्पर्क बनाए रखती है | इन अण्डों को पकने में ३० से ४० दिनों का समय लगता है। इस पूरे समय के बीच में एक बार भी वह अण्डों के पास नहीं आती | वह हजारों मील दूर से अण्डों के पकने में आवश्यक मदद करती रहती है | यदि कोई अण्डों को नष्ट कर दे तो इसकी सूचना उसे तुरंत मिल जाती है | इतना ही नहीं यदि किसी दुर्घटना में उस मादा कछुए की मौत हो जाए तो कुछ ही समय में अण्डों के अन्दर के बच्चे मर जाते हैं और कुछ घण्टों में ही सारे अण्डे सडऩे लगते हैं |यह प्राकृतिक टेलीपैथी का एक अद्भुत उदाहरण है |

टेलीपैथी द्वारा हम अपने घनिष्ठ प्रियजनों के बीच आतंरिक एकात्मकता स्थापित कर सकते हैं |प्राचीन ऋषि मुनियों को यह विद्या सहज सिद्ध थी |समाधि की अवस्था में वे ब्रह्माण्ड के किसी कोने की कोई भी सूचना ला सकते थे तथा ब्रह्माण्ड के किसी भी कोने में अपनी सूचना संप्रेषित कर सकते थे |उदाहरण के तौर पर जो भारतीय मनीषियों ने कई हजार साल पहले कहा था वे बातें पाश्चात्य विज्ञान आज प्रमाणित कर रहा है |खेद का विषय है की आधुनिक भारत अपनी इस पुरातन विद्या को विस्मृत कर चूका है ,जबकि पाश्चात्य देशों में इसके विविध आयामों का विकास किया जा रहा है |यहाँ प्रारम्भिक साधना के रूप में दो अलग -अलग कमरों में बैठे लोग अपने विचारों को परस्पर संप्रेषित करने का अभ्यास करते हैं |साधना की उच्चावस्था में वे एक-दुसरे के विचारों को सही-सही ढंग से पकड़ने में सफल हो जाते हैं |

मनोविज्ञान से सम्बंधित होने के कारण टेलीपैथी में ऐसा माना जाता है की बेतार के तार की तरह मानस तत्त्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैला होता है |कोई साधक अपने भावों को दूरस्थ बैठे व्यक्ति तक संप्रेषित करना चाहता है ,तब क्या होता है ?,उसके मन से भावों की एक तरंग उठती है और दुसरे वांछित मनुष्य के मानस क्षेत्र में वह प्रविष्ट हो जाती है |टेलीपैथी का एक सामान्य उदाहरण आपका रात्री में खुद को एकाग्रता से दिया गया निर्देश हो सकता है की में अमुक समय जाग जाऊं |आपको आश्चर्य होगा की आप उस समय एक बार जरुर जागेंगे |यह खुद के मानसिक बल से खुद को ही दी गयी सूचना है जिसे आपका अवचेतन मन पकड़ लेता है और तदनुरूप प्रतिक्रिया कर आपको जगा देता है |

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