हीरे का असली रंग श्वेत वर्ण ही होता है। फिर भी यह अनेक रंगों में पाया जाता है। देवताओं से लगाकर मनुष्यों तक पर रत्नों का प्रभाव रहा है और हीरा तो हीरा है। हीरा रत्न अनामिका में, शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को अभिमंत्रित कर, शुक्र के सोलह हजार जप (ॐ शुं शुक्राय नमः) करवा कर धारण करने का विधान है।
प्राचीन शास्त्रों के अनुसार हीरे के आठ भेद होते हैं, जो निम्न हैं :
हंस पति हीरा- यह हीरा हंस व बगुले के पंख के समान तथा दूध व दही के समान श्वेत वर्ण का होता है। ब्रह्माजी हंस पति हीरा को ही धारण करते हैं।
* कमलापति हीरा- यह अनार तथा गुलाबी रंग कमल के पुष्प के वर्ण का होता है, इसे लक्ष्मीपति भगवान विष्णु धारण करते हैं।
* बसंती हीरा- यह हीरा गेंदा पुष्प, जद गुलदाऊदी या पुखराज के रंग का होता है, इसे जगदीश्वर शिवजी स्वयं धारण करते हैं।
* वज्रनील हीरा- यह हीरा असली पुष्प अथवा नीलकंठ पक्षी के रंग के समान नील वर्ण का होता है, इसे देवराज इन्द्र धारण करते हैं।
वनस्पति हीरा- यह हीरा जल या सिरस पत्र के रंग के समान होता है, इसे वरुण देव धारण करते हैं।
* श्याम वज्र- यह कृष्ण वर्ण का होता है, इसे यमराज धारण करते हैं।
* तेलिया हीरा- यह अत्यंत चिकना, जर्मी तथा स्याही के रंग का होता है। इसे भी यमराज धारण करते हैं।
* सनलोई हीरा- यह पीत, कृष्ण तथा सुर्ख व भूरे रंग का होता है।
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