* प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।
* घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
* फिर हमें ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
* तत्पश्चात दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
* फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
* अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा पर यह भी है खास :-
* गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए।
* यह पर्व श्रद्धा से मनाना चाहिए, अंधविश्वास के आधार पर नहीं।
* इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
* गुरु का आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े तथा हर विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है।
* इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
गुरु पूर्णिमा 2015
गुरु पूर्णिमा महोत्सव आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है और इसी के संदर्भ में यह समय अधिक प्रभावी भी लगता है. इस वर्ष गुरू पूर्णिमा 31 जुलाई 2015, को मनाई जाएगी. गुरू पूर्णिमा अर्थात गुरू के ज्ञान एवं उनके स्नेह का स्वरुप है. हिंदु परंपरा में गुरू को ईश्वर से भी आगे का स्थान प्राप्त है तभी तो कहा गया है कि हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर. इस दिन के शुभ अवसर पर गुरु पूजा का विधान है. गुरु के सानिध्य में पहुंचकर साधक को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त होती है.
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी होता है. वेद व्यास जी प्रकांड विद्वान थे उन्होंने वेदों की भी रचना की थी इस कारण उन्हें वेद व्यास के नाम से पुकारा जाने
श्री सद्गुरु स्तोत्रम्गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुरेव परं ब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ १ ॥अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरं ।तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ २ ॥अज्ञानतिमिरान्धस्य, ज्ञानाञ्जन शलाकया ।चक्षुरुन्मीलितंयेन, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ ३ ॥स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं, येन कृत्स्नं चराचरं ।तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ ४ ॥चिद्-रुपेण परि-व्याप्तं, त्रैलोक्यं सचराचरं ।तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ ५ ॥सर्व-श्रुति-शिरो-रत्न-समुद्भासित-मुर्तये ।वेदान्ताम्बुज-सूर्याय, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥६ ॥चैतन्य: शाश्वत: शान्तो, व्योमातीतो निरञ्जनः ।बिन्दु-नाद-कलातीत: , तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ ७ ॥ज्ञानशक्ति समारुढ: , तत्व-माला-विभुषित: ।भुक्ति मुक्ति प्रदानेन, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ ८ ॥अनेकजन्म सम्प्राप्त कर्मबन्ध विदाहिने ।आत्मज्ञानाग्नि दानेन, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ ९ ॥शोषणं भवसिन्धोश्च, प्रापणं सारसम्पद: ।यस्य पादोदकं सम्यक्, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ १० ॥न गुरोरधिकं तत्वं, न गुरोरधिकं तप: ।तत्व ज्ञानात् परं नास्ति, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ ११ ॥मन्नाथ: श्रीजगन्नाथो, मद्गुरु: श्रीजगद्गुरु: ।मदात्मा सर्व-भूतात्मा, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ १२ ॥गुरुरादिरनादिश्च, गुरु: परम दैवतं ।गुरोः परतरं नास्ति, तस्मै श्रीगुरवे नम:
॥ १३ ॥ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमुर्तिम् ।द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यम् ॥एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम् ।भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि
॥ १४ ॥॥ श्रीविश्वसार तन्त्रे श्री सदगुरु स्तोत्रम् ॥
|| गुरु गायत्री मन्त्रः ||ॐ गुरुदेवाय विद्महे
परब्रह्माय धीमहि । तन्नो गुरुः प्रचोदयात ॥
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