अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि।। 23।।
परंतु उन अल्पबुद्धि वालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त मेरे को ही प्राप्त होते हैं।
कामनाओं से प्रेरित होकर की गई प्रार्थनाएं जरूर ही फल लाती हैं। लेकिन वे फल क्षणिक ही होने वाले हैं; वे फल थोड़ी देर ही टिकने वाले हैं। कोई भी सुख सदा नहीं टिक सकता, न ही कोई दुख सदा टिकता है। सुख और दुख लहर की तरह आते हैं और चले जाते हैं।
देवताओं की पूजा से जो मिल सकता है, वह क्षणिक सुख का आभास ही हो सकता है। वासनाओं के मार्ग से कुछ और ज्यादा पाने का उपाय ही नहीं है।
इसलिए कृष्ण कहते हैं, लेकिन जो मेरे निकट आता है–और उनके निकट आने की शर्त है, वासनाओं को छोड़कर, विषयासक्ति को छोड़कर–वह उसे पाता है, जो नष्ट नहीं होता, जो खोता नहीं, जो शाश्वत है। इसलिए उन्होंने दो बातें इस सूत्र में कही हैं। अल्पबुद्धि वाले लोग!
अल्पबुद्धि वाले लोग कौन हैं? अल्पबुद्धि वाले लोग वे हैं, जो कि अपने ही हाथों, बहुत बड़े मूल्य पर बहुत छोटी चीज खरीदने को राजी हो जाते हैं। बहुत बड़े मूल्य पर बहुत छोटी चीज खरीदने को राजी हो जाते हैं। प्रार्थना से तो मिल सकता है परम सत्य, लेकिन वे मांग लेते हैं कुछ क्षुद्र वस्तुएं। प्रार्थना से मिल सकता है परम जीवन, लेकिन वे मांग लेते हैं शरीर की कुछ जरूरतें।
निश्चित ही, अल्पबुद्धि हैं इस कारण। और इसलिए भी अल्पबुद्धि हैं कि जो भी वे मांगते हैं, वह मिल भी जाए, तो भी मांग का कोई अंत नहीं होता। जो वे पाना चाहते हैं, पा लें, तब भी वे उतने ही अतृप्त, उतने ही दीन और उतने ही अधूरे होते हैं, जितना मिलने के पहले थे।
मांगना ही हो, तो उसे मांग लेना चाहिए, जिसे मांगकर फिर और कोई मांग शेष न रह जाए। पाना ही हो, तो उसे पा लेना चाहिए, जिसे पाकर तृप्ति हो जाती है, और पाने की दौड़ समाप्त हो जाती है। लेकिन अल्पबुद्धि लोग दूर तक नहीं देख पाते। विस्तीर्ण, जीवन के पूरे पहलू को नहीं समझ पाते। क्षणिक उनकी बुद्धि होती है। अभी जो लगता है जरूरी, वह मांग लेते हैं।
बुद्धिमान वही है, जो जीवन की परम आवश्यकता को मांगता है।
अत्यंत सुन्दर एवम् सरलीकृत
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