संत प्रवचन

करुणा है ज्ञान की संगिनी

Written by Bhakti Pravah

थोड़ा जागो। पहला जागरण इस बात का कि यह संसार इतना मूल्यवान नहीं है कि इसमें तुम इतने परेशान हो। कोई आदमी तुम्हें गाली देता है; न तो वह आदमी इतना मूल्यवान है, न उसकी गाली इतनी मूल्यवान है कि तुम परेशान होओ। न तुम्हारा अहंकार इतना मूल्यवान है कि उसके लिए तुम उपद्रव खड़ा करो। यह धर्मशाला है। किसी का पैर तुम्हारे पैर पर पड़ गया तो परेशान मत हो।

मुल्ला नसरुद्दीन एक सिनेमा से बाहर आ रहा था इंटरवल में। एक आदमी के पैर पर उसका पैर पड़ा। वह आदमी तिलमिला गया। लेकिन उसने सोचा कि अंधेरा है, अभी-अभी प्रकाश हुआ है, एकदम से लोगों को दिखाई भी नहीं पड़ता अंधेरे में रहने के बाद, हो गयी होगी भूल। फिर लौट कर नसरुद्दीन आया। उस आदमी के पास आकर पूछा- क्या भाई साहब, आपके पैर पर मेरा पैर पड़ गया था? उस आदमी ने सोचा कि यह क्षमा मांगने आया है। उसने कहा- हां। मुल्ला ने पीछे लौट कर अपनी पत्नी से कहा- आ जाओ, यही अपनी लाइन है। वे लाइन बनाने के लिए पैर पर पैर रख गए थे!

तो जो आदमी तुम्हें गाली दे रहा है, उसके अपने प्रयोजन होंगे। तुम्हें उसमें परेशान हो जाने की कोई जरूरत नहीं है। भीड़-भड़क्का है यहां। सब अपना-अपना खोज रहे हैं। किसी से तुम्हें न प्रयोजन है, न तुम्हें किसी से प्रयोजन है। यहां हर आदमी अपना खेल खेल रहा है। और थोड़े धक्के-मुक्के होंगे ही, क्योंकि इतनी भीड़ है, रास्ता है, इतना ट्रैफिक है। अगर तुम थोड़ा-सा इसे देख पाओ और इस बोध को रख सको, क्रोध गिरेगा, घृणा गिरेगी, ईर्ष्या गिरेगी, जलन… और उनसे पैदा होने वाले कृत्य विदा हो जाएंगे। जिस दिन तुम्हारे घृणा से संबंधित कृत्य गिर जाएंगे, उसी दिन तुम्हें लोगों पर दया आने लगेगी, क्योंकि हर आदमी मूर्च्छित है। कल क्रोध आता था, अब दया आएगी। और तुम्हें लगेगा कि हर आदमी भटका हुआ है। लोग अंधेरे में जी रहे हैं। किसी का कोई कसूर नहीं है। लोग सोए हुए हैं। सोया हुआ आदमी बड़बड़ा रहा हो, गाली बक रहा हो, तो भी तुम कुछ न कहोगे। नींद में है, तुम कहोगे।

एक शराबी गाली दे रहा हो तो तुम कहते हो शराबी है, पी गया है। लेकिन यही हालत सबकी है। जन्मों-जन्मों के कमार्ें की शराब है। गहरी नींद है। तुम्हें दया आएगी। अगर तुम थोड़े भी जगोगे तो तुम्हें दया आएगी कि चारों तरफ इतने लोग कितनी परेशानी उठा रहे हैं। धर्मशाला को घर समझे हुए हैं। अदालतों में मुकदमे लड़ रहे हैं, कि धर्मशाला किसकी है। तुम्हें दया आनी शुरू होगी। और तुम्हारी दया के साथ ही, तुम्हारे कृत्यों का रूप बदलेगा। जहां कृत्य पाप थे, वहां पुण्य होने लगेंगे। जहां तुम दूसरे को नुकसान पहुंचाने को तत्पर हो जाते थे, वहां दूसरे को सहारा देने को तत्पर हो जाओगे।

इसलिए तो नानक कहते हैं, ज्ञान और दया। ज्ञान यानी जागरण, और दया यानी तुम्हारे कृत्यों में जागरण के कारण हुआ परिवर्तन। अज्ञान भीतर, हिंसा बाहर। उन दोनों का संग है। ज्ञान भीतर, करुणा बाहर। उन दोनों का संग है। ‘कर्म के अनुसार विचार होगा।’

अब यह बहुत मजे की बात है कि तुम अच्छी-अच्छी बातें सोचते हो और बुरी-बुरी बातें करते हो। करते तुम बुरा हो, सोचते बड़ा अच्छा हो। लेकिन तुम्हारे सोचने का कोई विचार होने वाला नहीं है। तुमने क्या सोचा, इससे कुछ हिसाब नहीं है। तुमने क्या किया, वही तुम्हारा प्रमाण है। कृत्य तुम्हारा प्रमाण है, तुम्हारा विचार नहीं।

इसे थोड़ा समझना। यह थोड़ा बारीक है। जब आदमी बुरा काम करता है तो उसके भीतर पछतावा होता है। जब आदमी किसी पर कठोर हो जाता है, क्रोध करता है, अपमान कर देता है तो भीतर पछतावा होता है। भीतर लगता है, यह उचित नहीं हुआ। तो भीतर अच्छे-अच्छे विचार करता है, करुणा के, दया के, कि दुबारा मौका आने पर दया करूंगा। पछताता है कि भीतर, जो संतुलन खो गया है बुरा कर के, उस पलड़े को वह भारी कर देता है विचार के, शुभ धारणाओं के कारण। तुम अच्छा-अच्छा सोचते हो, ताकि तुम्हारी नजर में जो तुमने बुरा किया है, वह ढंक जाए।
साभार ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली

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