ज्योतिष में अस्ठ्म भाव को सबसे पापी भाव की संज्ञा दी गई है जिसका कारण ये है की ये हमारे भाग्य भाव का नास भाव है साथ ही इसे समसान की संज्ञा भी दी गई है | शुक्र जो की एक कोमल और स्त्री ग्रह है उसकी दशा का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हो की एक सुंदर सुशिल कोमल स्त्री को समसान का कार्यभार सोंप दिया जाए तो उसकी क्या हालत होगी | जिस भी जातक की कुंडली में शुक्र अस्ठ्म भाव में हो वो जीवन का सम्पूर्ण आनन्द नही ले पाता चाहे उसके पास ऐश आराम के कितने भी साधन हो उसे उनमे कोई न कोई कमी नजर आ ही जाती है | जैसे की किसी बड़े शादी समारोह में जाकर आये और वापिस आकर कहे की और सब तो बिलकुल सही था बस टेंट के पर्दों के रंग सही नही थे यानी की ये ख़ुशी को सही ठंग से भोग नही सकते |
लाल किताब में अस्ठ्म भाव के शुक्र को “जली मिटटी की चांडाल औरत “ कहा गया है | यानी ऐसे जातक को पत्नी से भी सम्पूर्ण सुख नही मिलता | जैसे की रोटी खाने बैठे पति ने कहा आज तो दाल में पानी ज्यादा है और पत्नी ने हाथ पर चिमटा दे मारा तो पति ने कहा की पानी तो ज्यादा है लेकिन फिर भी दाल स्वाद है यानी ऐसा इंसान किसी तरह अपनी ग्रहस्थी की गाडी चला लेता है |
अस्ठ्म भाव के शुक्र की सप्तम दृष्टी दुसरे धन भाव पर पडती है और ऐसे में जातक के पास धन के साधन चाहे कितने भी हो लेकिन धन की थैली में ऐसा छेद हो जाता है की पता ही नही चलता की धन आकर कहा चला गया | चूँकि ये भाव गुप्त धन का भी होता है ऐसे में जातक को किसी की वसीयत से या किसी की मृत्यु से जैसे की बीमे की रकम मिलना के योग बन जाते है | स्त्री की कुंडली में होने पर उसके प्रेमी द्वारा धन लाभ के योग बन जाते है उसका प्रेमी उस पर धन लुटाता है | ये भाव गुप्त ज्ञान जैसे ज्योतिष का भी है लेकिन लोगों को इस ज्ञान से लाभ कम ही मिल पाता है | इस भाव के शुक्र वाला जातक अपने हाथों से अपनी वीर्य शक्ति का नुक्सान करता है | ऐसे में बाद में उसे शारीरिक कमजोरी का सामना करना पड़ता है और विवाहिक जीवन में दुस्वारियां पैदा होने की सम्भावना बन जाती है |
अस्ठ्म भाव में सूर्य शुक्र का योग जातक को अशुभ फल देता है | जातक की पत्नी को कोई न कोई गुप्त रोग होने की पूरी सम्भावना होती है |
मंगल शुक्र के योग को इस भाव में शुभ नही बताया गया है लाल किताब में कहा गया है की ऐसा इंसान जिस दरख्त के निचे बैठे वो पेड़ ही सुक जाता है यानी जातक जिसके पास भी सहयता के लिय जाता है वो सहायता देने वाला ही सहायता देने लायक नही रहता |
बुद्ध शुक्र का योग भी इस भाव में शुभ फल नही देता | इस बारे में लाल किताब में एक लाइन है की रब्ब ने बनाई ऐसी जोड़ी एक अंधा एक कोढ़ी यानी पति पत्नी दोनों ही दुखी रहते है |
शुक्र के साथ शनी होने पर शुक्र के अशुभ फल में कमी हो जाती है | जातक की लम्बी आयु होने के योग बनते है |
चन्द्र शुक्र का योग भी शुभ फल नही मिलता ऐसे में जातक यदि विर्ध औरतों की सेवा करे उनका आशीर्वाद लेता रहे तो जातक को अशुभ फलों में कमी मिल जाती है |
राहू शुक्र का योग जातक को मिटटी भरी काली आंधी के समान जातक को अशुभ फल मिलता है जैसे ऐसी आंधी में कुछ नजर नही आता उसी तरह जातक के जीवन में अन्धकार छा जाता है |
शुक्र केतु का योग अशुभ फल मिलता है | जातक को सन्तान प्राप्ति में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है |
गुरु के साथ भी शुक्र का शुभ फल नही मिलता | जातक के पिता को भी संघर्ष का जीवन जीने के योग बन जाते है | गुरु का ज्ञान इस भाव में आकर जातक को ज्यादा लाभ नही दे पाता जातक एक टयूशन पढ़ाने वाले अध्यापक की तरह ही अपने ज्ञान को बेचने लग जाता है यानी की उसके ज्ञान का उसे पूर्ण लाभ नही मिल पाता|
मित्रों ये लाल किताब पर आधारित विवेचना है | यदि वैदिक के अनुसार शुक्र यहाँ विपरीत राजयोग बना रहा होगा तो उसके अशुभ फल में कमी हो जायेगी | लाल किताब के अनुसार यदि चन्द्र अच्छी सिथ्ती में हुआ तो भी शुक्र के अशुभ फल में कमी हो जायेगी | ऐसे में चन्द्र की मदद यानी चन्द्र के उपाय करने होंगे | यदि चन्द्र की हालत भी कुंडली में खराब हो तो बुद्ध की मदद से जातक आराम पायेगा यदि वो भी खराब हो तो मंगल की मदद लेनी होगी लेकिन मंगल भी खराब हुआ तो राहू के नील फूल गंदे नाले में डालने से सहायता मिलेगी | सफेद गाय मंद भाग्य का सबूत होगी जबकि काली स्याह रंग की गाय भाग्य में विरधी करेगी | शुक्र की खुद की मदद के लिय हरी ज्वार मिटटी में दबाने से उसे सहायता मिलेगी | गौ सेवा हर प्रकार से लाभ देगी और गौ दान हर प्रकार से लाभ देगा|
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